अस्थिर विश्व, स्थिर साझेदार — भारत और ASEAN संबंधों का नया आयाम

अस्थिर विश्व, स्थिर साझेदार — भारत और ASEAN संबंधों का नया आयाम

🇮🇳 अस्थिर विश्व, स्थिर साझेदार — भारत और ASEAN संबंधों का नया आयाम


वर्तमान समय में जब पूरी दुनिया राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा अस्थिरता के दौर से गुजर रही है,
ऐसे में भारत और ASEAN देशों के बीच एक स्थिर, भरोसेमंद और दीर्घकालिक साझेदारी की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।
लेखक राम माधव का मानना है कि भारत को ASEAN के भीतर बढ़ती स्थिरता की चाह और भारत के प्रति झुकाव को समझना चाहिए।
भारत और ASEAN, मिलकर एक “Free, Open और Inclusive Indo-Pacific” की अवधारणा को साकार कर सकते हैं,
जो इस पूरे क्षेत्र में शांति और सहयोग का आधार बन सकती है।


भारत और ASEAN के औपचारिक संबंध वर्ष 1992 में स्थापित हुए थे।
इन संबंधों की शुरुआत “Look East Policy” से हुई, जिसे प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने प्रारंभ किया।
बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “Act East Policy” में रूपांतरित किया,
जिसका उद्देश्य था — सिर्फ देखना नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से जुड़ना।
आज दोनों पक्ष अपनी साझेदारी को Comprehensive Strategic Partnership के स्तर तक पहुँचा चुके हैं।


आज की विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय (Multipolar) और अत्यंत अस्थिर (Unstable) हो चुकी है।
अमेरिका–चीन प्रतिस्पर्धा, दक्षिण चीन सागर विवाद, और रूस–यूक्रेन युद्ध जैसे घटनाक्रमों ने वैश्विक संतुलन को हिला दिया है।
ऐसी स्थिति में ASEAN देश ऐसी साझेदारी चाहते हैं जो उन्हें रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) बनाए रखने में मदद करे
और क्षेत्र में स्थिरता और संतुलन (Regional Stability) सुनिश्चित कर सके।


भारत ASEAN के लिए एक विश्वसनीय, स्थिर और संतुलित साझेदार के रूप में उभर रहा है।

🔹 1. साझा दृष्टिकोण (Shared Vision):

भारत का “Free, Open, Inclusive Indo-Pacific” विज़न,
ASEAN के “Outlook on Indo-Pacific (AOIP)” से मेल खाता है।
दोनों ही देशों का उद्देश्य है — क्षेत्र में खुलापन, सहयोग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।

🔹 2. सांस्कृतिक और सभ्यतागत जुड़ाव:

भारत और ASEAN के बीच हजारों वर्षों पुराना सांस्कृतिक रिश्ता है।
बौद्ध और हिन्दू सभ्यता के संपर्क, भारतीय भाषा, कला और व्यापारिक परंपराओं ने इस जुड़ाव को और मजबूत किया है।

🔹 3. सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:

दोनों पक्ष अनेक क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं —

  • समुद्री सुरक्षा (Maritime Security)
  • ब्लू इकॉनमी और समुद्री संसाधन प्रबंधन
  • डिजिटल कनेक्टिविटी
  • आपदा प्रबंधन
  • व्यापार और निवेश का विस्तार

हालाँकि संबंधों में प्रगति हुई है, पर कुछ चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं —

  • भारत–ASEAN व्यापार संतुलन (Trade Balance) अभी भी ASEAN के पक्ष में झुका हुआ है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर भारत में असंतोष है।
  • ASEAN के कई देशों में चीन की आर्थिक और राजनीतिक प्रभावशीलता बढ़ी हुई है।
  • भारत की विदेश नीति अब भी क्षेत्रीय नेतृत्व में उतनी दृढ़ता नहीं दिखा पा रही जितनी अपेक्षित है।

लेखक का मत है कि भारत को ASEAN की स्थिरता की खोज को कूटनीतिक अवसर के रूप में देखना चाहिए।
भारत को अपनी Act East Policy को अब Act Indo-Pacific Policy में परिवर्तित करना होगा —
जहाँ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक तीनों आयाम समान रूप से सक्रिय हों।
साथ ही, सॉफ्ट पावर (Soft Power), शिक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग के माध्यम से भारत को अपनी भूमिका और मजबूत करनी चाहिए।
भारत अब केवल “साझेदार” नहीं, बल्कि एक “सह-नेता (Co-Leader)” की भूमिका निभा सकता है।


भारत और ASEAN दोनों के बीच —

  • साझा लोकतांत्रिक मूल्य,
  • साझा समुद्री सीमाएँ,
  • और साझा विकास के हित हैं।
    इसीलिए ये दोनों पक्ष एक-दूसरे के स्वाभाविक साझेदार (Natural Partners) हैं।

“In an unstable world, India stands as a stable and reliable partner for ASEAN.”

आज जब वैश्विक राजनीति में अस्थिरता, प्रतिस्पर्धा और अनिश्चितता बढ़ रही है,
भारत और ASEAN की साझेदारी क्षेत्र में स्थिरता, समावेशन और सहयोग की नई दिशा प्रदान करती है।
यह संबंध केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि एक ऐसा पुल है जो
Indo-Pacific क्षेत्र को शांति, सुरक्षा और साझा समृद्धि की ओर अग्रसर कर सकता है।

  1. भारत और ASEAN के औपचारिक संबंध 1992 में प्रारंभ हुए थे।
  2. भारत ने “Look East Policy” की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान की थी।
  3. “Act East Policy” का उद्देश्य केवल व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना है।

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

(a) म्यांमार
(b) वियतनाम
(c) श्रीलंका
(d) इंडोनेशिया