भारत को वैज्ञानिक महाशक्ति बनाने के लिए नई सोच और शोध सुधार की ज़रूरत
भारत अब विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। हाल ही में सरकार ने एक नई योजना पर विचार किया है — जिसके तहत भारतीय मूल के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को विदेश से वापस लाकर देश के शोध संस्थानों में काम करने का अवसर दिया जाएगा।
इसका उद्देश्य है कि भारत अपना वैज्ञानिक और अनुसंधान ढांचा (research ecosystem) मजबूत करे और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाए।
🌏 योजना का मूल विचार
सरकार की यह योजना अमेरिका और अन्य देशों में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों को STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) क्षेत्रों में भारत आने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
इसके तहत:
- उन्हें IITs और अन्य प्रमुख शोध संस्थानों में काम करने का मौका मिलेगा।
- साथ ही, सरकार उन्हें एक स्थापना अनुदान (setup grant) भी देगी ताकि वे अपनी रिसर्च लैब या परियोजना शुरू कर सकें।
ऐसी कोशिशें पहले भी की गई थीं — कई योजनाओं में NRI वैज्ञानिकों को अल्पकालिक सहयोग के लिए बुलाया गया, लेकिन वे लंबे समय तक टिक नहीं पाईं।
अब सरकार चाहती है कि यह योजना स्थायी रूप से प्रभावी हो और देश में शोध का माहौल और सशक्त बने।
⚙️ योजना की चुनौतियाँ
भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में दो प्रमुख समस्याएँ हैं —
- कमज़ोर शोध ढांचा (Research Infrastructure)
- जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाएँ (Bureaucratic Delays)
अक्सर शोधकर्ताओं को फंड मिलने में महीनों लग जाते हैं।
नई परियोजनाओं की मंजूरी के लिए लम्बी फाइल प्रक्रिया, कागज़ी औपचारिकताएँ और धीमी गति से काम करने वाली संस्थागत व्यवस्था उनके उत्साह को कम कर देती है।
इसके अलावा, जो वैज्ञानिक विदेश से लौटते हैं, उन्हें सांस्कृतिक और कार्यस्थलीय समायोजन की समस्या होती है।
विदेशों में अनुसंधान का माहौल खुला और स्वतंत्र होता है, जबकि भारत में अभी भी कई स्तरों पर निर्णय-प्रक्रिया धीमी और जटिल है।
💰 वेतन और सुविधाओं का अंतर
एक बड़ी समस्या है वेतन असमानता (Salary Gap)।
भारत के शीर्ष संस्थानों में काम करने वाले वैज्ञानिकों का वेतन और रिसर्च फंड, अमेरिका और यूरोप की तुलना में काफी कम है।
इसके कारण कई प्रतिभाशाली भारतीय वैज्ञानिक अपने देश वापस आने से हिचकिचाते हैं।
जब तक देश में उन्हें आर्थिक सुरक्षा, बेहतर प्रयोगशाला सुविधाएं और सम्मानजनक वातावरण नहीं मिलेगा, तब तक यह पहल सीमित ही रह जाएगी।
🐢 चीन से मिलने वाली सीख
लेख में चीन का उदाहरण दिया गया है, जहाँ “Thousand Talents Plan” के तहत विदेशी चीनी वैज्ञानिकों को बड़े पैमाने पर वापस बुलाया गया।
सरकार ने उन्हें:
- पर्याप्त फंडिंग,
- विश्वस्तरीय प्रयोगशालाएँ,
- और प्रशासनिक रूप से सरल प्रक्रिया
प्रदान की।
इसका परिणाम यह हुआ कि आज चीन में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों और शोध केंद्रों की संख्या भारत से कहीं अधिक है।
वह अब कई विज्ञान और तकनीक क्षेत्रों में अमेरिका की बराबरी कर रहा है।
🧠 भारत के लिए आगे का रास्ता
भारत के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।
जरूरत सिर्फ एक ऐसे माहौल की है जहाँ यह प्रतिभा खिल सके।
भारत को चाहिए कि वह:
- नवाचार-आधारित शिक्षा प्रणाली अपनाए, जहाँ विद्यार्थियों को प्रयोग और खोज के लिए प्रोत्साहन मिले।
- नौकरशाही जटिलताओं को खत्म करे ताकि वैज्ञानिकों को निर्णय लेने और काम शुरू करने में बाधा न हो।
- फंडिंग प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाए।
- और सबसे महत्वपूर्ण — एक “रिसर्च को सम्मान देने वाली संस्कृति” (Research-Respecting Culture) विकसित करे।
🌠 निष्कर्ष
भारत में बहुत से वैज्ञानिक हैं जो विदेशों में रहकर भी अपने देश के विकास में योगदान देना चाहते हैं।
अगर उन्हें यहाँ
- आधुनिक प्रयोगशालाएँ,
- सहयोगपूर्ण टीम वातावरण,
- और स्वतंत्र रूप से शोध करने की आज़ादी
मिले — तो वे देश को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं।
सरकार का यह प्रयास तभी सफल होगा जब “वापसी की योजना” के साथ-साथ “स्थायी शोध वातावरण” भी तैयार किया जाए।
अगर भारत इस अंतर को समझकर इसे दूर करने में सफल होता है, तो आने वाले वर्षों में भारत दुनिया की वैज्ञानिक और तकनीकी महाशक्ति बनने की दिशा में एक ऐतिहासिक छलांग जरूर लगाएगा।
मुख्य परीक्षा प्रश्न
भारत में शोध और नवाचार को सशक्त बनाने के लिए प्रशासनिक लचीलापन, संस्थागत सुधार और अकादमिक स्वतंत्रता कितनी आवश्यक हैं — विश्लेषण कीजिए।” (250 शब्द)

