📰 वास्तविक आवश्यकता — एक समग्र जनांकिकीय मिशन की
(The Real Need is a Holistic Demographic Mission)
🔶 भूमिका : एक नए विमर्श की आवश्यकता
भारत में 15 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित “जनांकिकीय मिशन” (Demographic Mission) ने सामाजिक और राजनीतिक बहस को नया आयाम दिया।
सरकार का उद्देश्य सीमांत इलाकों — विशेष रूप से बांग्लादेश से अवैध प्रवास — की निगरानी था।
परंतु यह विषय केवल सीमांत सुरक्षा या जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित नहीं रह सकता।
👉 भारत आज एक जनांकिकीय संक्रमण काल (Demographic Transition Phase) से गुजर रहा है, जहाँ जनसंख्या का आकार, संरचना, प्रवासन और सामाजिक असमानताएँ — सभी नीति-निर्माण के केंद्र में हैं।
🔶 ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य : जनसंख्या विमर्श की यात्रा
भारत में जनसंख्या नीति की जड़ें स्वतंत्रता से पहले के काल में ही दिखाई देती हैं।
परंतु स्वतंत्रता के बाद यह विमर्श तीन प्रमुख चरणों में विकसित हुआ —
🩵 (1) 1951–1976 : जनसंख्या नियंत्रण युग
- 1952 में भारत विश्व का पहला देश बना जिसने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति घोषित की।
- लक्ष्य था — जन्म दर को घटाना और जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना।
- इस काल में ध्यान परिवार नियोजन (Family Planning) पर था, न कि जनसांख्यिकीय संतुलन पर।
- 1976 की नीति (आपातकाल काल) में जबरन नसबंदी अभियानों ने इस विषय को सामाजिक अविश्वास से जोड़ दिया।
🩵 (2) 1977–2000 : विकास और जनसंख्या का संबंध
- इस दौर में जनसंख्या को विकास के साथ जोड़ा गया।
- 1994 के काहिरा सम्मेलन (ICPD) के बाद भारत ने ‘जनसंख्या नियंत्रण’ से हटकर ‘जनसंख्या स्थिरीकरण’ और ‘प्रजनन अधिकारों’ पर ध्यान केंद्रित किया।
- 2000 की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy, NPP-2000) ने जनसंख्या को संसाधन के रूप में देखने की दृष्टि दी।
🩵 (3) 2000–वर्तमान : जनसंपदा (Demographic Dividend) की दिशा
- भारत के पास अब विश्व की सबसे बड़ी कार्यशील (working-age) जनसंख्या है —
🔹 15 से 64 वर्ष आयु समूह = लगभग 68%
🔹 औसत आयु = 28 वर्ष (चीन: 39 वर्ष) - यह “Demographic Dividend” केवल तब लाभकारी है जब शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार नीति इसे दिशा दे।
- परंतु इन नीतियों का अभाव “Demographic Disaster” भी बन सकता है।
🔶 वर्तमान परिदृश्य : भारत जनांकिकीय संक्रमण के मध्य में
भारत ने प्रजनन दर में उल्लेखनीय सुधार किया है।
- कुल प्रजनन दर (TFR) 1951 में 6.0 थी, जो 2024 में घटकर 2.0 से भी कम हो चुकी है।
- शिशु मृत्यु दर (IMR) 146 (1951) → 27 (2024)।
- परंतु प्रवासन (Migration) और जनसंख्या असंतुलन अभी भी गंभीर चुनौती हैं।
🔶 1️⃣ शिक्षा और कौशल क्षमता — जनांकिकीय असमानता की जड़
भारत के विभिन्न राज्यों में शिक्षा और कौशल का असमान वितरण जनसंख्या लाभांश के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है।
| राज्य | साक्षरता दर (%) | कौशल प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं का अनुपात (%) |
|---|---|---|
| केरल | 94 | 32 |
| उत्तर प्रदेश | 73 | 12 |
| बिहार | 71 | 10 |
| तमिलनाडु | 89 | 28 |
| महाराष्ट्र | 86 | 25 |
🧭 स्पष्ट है — शैक्षिक और कौशल ढांचा जितना सशक्त, जनांकिकीय लाभ उतना ही प्रभावी।
🔶 2️⃣ प्रवासन (Migration) — आर्थिक संतुलन का माध्यम
भारत में आंतरिक प्रवासन 450 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है।
प्रवासी श्रमिक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं — विशेषकर निर्माण, सेवा, कृषि और उद्योग क्षेत्रों में।
परंतु उनके सामने तीन प्रमुख चुनौतियाँ हैं —
- पहचान का संकट (Identity Crisis) — “घर” और “गंतव्य” दोनों से पराया होने की भावना।
- मताधिकार से वंचना (Disenfranchisement) — प्रवासियों को स्थायी मतदाता के रूप में दर्ज नहीं किया जाता।
- सामाजिक सुरक्षा की कमी — अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश प्रवासियों के पास कोई पेंशन, बीमा या स्वास्थ्य सुविधा नहीं।
🪔 इसलिए, एक समग्र जनांकिकीय मिशन का एक मुख्य घटक होना चाहिए —
“प्रवासी नागरिक अधिकार नीति” (Migrant Citizenship Framework)।
🔶 3️⃣ बढ़ती आयु और सामाजिक सुरक्षा
भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 1951 में 32 वर्ष थी, जो अब 70 वर्ष से अधिक हो चुकी है।
यह एक बड़ी उपलब्धि है, परंतु इससे नई नीतिगत जिम्मेदारियाँ भी उत्पन्न हुई हैं।
👉 वृद्ध आबादी (60+ आयु वर्ग) अब कुल जनसंख्या का 11% है, और 2050 तक यह 20% से अधिक होने की संभावना है।
इसका अर्थ है —
- पेंशन प्रणाली का विस्तार
- स्वास्थ्य देखभाल संरचना का पुनर्गठन
- वृद्धजन की उत्पादक भूमिका सुनिश्चित करना
💡 ‘Silver Economy’ की अवधारणा — यानी वृद्ध आबादी को आर्थिक और सामाजिक उत्पादकता से जोड़ना — भविष्य की दिशा हो सकती है।
🔶 4️⃣ नीति नियोजन में जनांकिकी का अभाव
भारत की अधिकांश नीतियाँ “Per Capita” (प्रति व्यक्ति) के औसत पर आधारित हैं।
लेकिन यह औसत आँकड़ा जनसंख्या संरचना (Population Composition) की विविधता को नज़रअंदाज़ करता है।
उदाहरण:
- एक ही औसत आय वाले दो राज्यों में यदि एक की युवा आबादी अधिक है, तो उसकी रोजगार और शिक्षा की ज़रूरतें भिन्न होंगी।
- दूसरी ओर वृद्ध आबादी वाले राज्य को स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता अधिक होगी।
इसलिए, नीति-निर्माण में “Demographic Sensitization” को अनिवार्य बनाना होगा।
🔶 5️⃣ अंतरराष्ट्रीय तुलना : भारत कहाँ खड़ा है?
| देश | औसत आयु | TFR | कार्यशील जनसंख्या (%) |
|---|---|---|---|
| भारत | 28 | 2.0 | 68 |
| चीन | 39 | 1.2 | 60 |
| जापान | 48 | 1.3 | 56 |
| अफ्रीका (औसत) | 19 | 4.3 | 53 |
भारत के पास अभी 25 वर्षों की “Demographic Window of Opportunity” शेष है।
यदि इस अवधि में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में निवेश किया गया — तो भारत “जनसंपदा महाशक्ति” (Human Capital Powerhouse) बन सकता है।
🔶 6️⃣ समग्र जनांकिकीय मिशन का ढांचा (Proposed Framework)
| आयाम | उद्देश्य | नीति दिशा |
|---|---|---|
| शिक्षा और कौशल | समान अवसर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा | राष्ट्रीय कौशल मानचित्रण |
| प्रवासन और नागरिक अधिकार | प्रवासी पहचान की सुरक्षा | पोर्टेबल वोटर कार्ड और श्रम पहचान |
| स्वास्थ्य और पोषण | जीवन गुणवत्ता में सुधार | क्षेत्रीय स्वास्थ्य असमानता सूचकांक |
| वृद्धजन नीति | सक्रिय वृद्धावस्था | Silver Economy और पेंशन सुधार |
| लैंगिक संतुलन | महिला श्रम सहभागिता बढ़ाना | Gender-sensitive labour reforms |
| डेटा और अनुसंधान | सटीक जनसांख्यिकीय निगरानी | एकीकृत Demographic Data Portal |
🔶 निष्कर्ष : जनसंख्या नहीं, जनसंपदा
भारत की जनसंख्या उसकी सबसे बड़ी शक्ति है, परंतु यदि इसे योजनाबद्ध रूप से विकसित न किया गया तो यह संभावना संकट बन सकती है।
समय आ गया है कि भारत “जनसंख्या नियंत्रण” से आगे बढ़कर “मानव पूंजी विकास” (Human Capital Development) पर ध्यान केंद्रित करे।
👉 “एक समग्र जनांकिकीय मिशन” — यही वह नीति ढांचा है जो भारत को 21वीं सदी में जनसंपदा शक्ति (Demographic Power) के रूप में स्थापित कर सकता है।

