📘 RTI के 20 साल: घटती पारदर्शिता की कहानी
विषय – शासन व्यवस्था एवं सूचना का अधिकार (GS Paper 2: Governance & RTI)
✍️ परिचय (Introduction)
भारत में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 को लागू हुए 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
यह कानून आम नागरिकों को सरकारी विभागों से जानकारी मांगने का अधिकार देता है, जिससे पारदर्शिता, जवाबदेही और जन-भागीदारी को मजबूती मिली।
परंतु हाल के वर्षों में विभिन्न रिपोर्टों और कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि RTI की आत्मा अब कमजोर हो रही है —
संस्थागत निष्क्रियता, रिक्त पदों और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023 जैसी नई कानूनी बाधाओं ने इसकी प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
🏛️ RTI अधिनियम क्या है? (About the RTI Act)
- जून 2005 में तत्कालीन UPA सरकार द्वारा पारित किया गया।
- यह प्रत्येक नागरिक को केवल ₹10 शुल्क में किसी भी सरकारी संस्था से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- इसका उद्देश्य है – शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतांत्रिक सहभागिता को बढ़ाना।
📜 RTI अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features)
- तीन-स्तरीय ढांचा (Three-tier Structure):
- विभागीय PIO (Public Information Officer)
- प्रथम अपीलीय अधिकारी
- केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग (CIC/SIC)
— यह संरचना हर स्तर पर जाँच और अपील की सुविधा देती है।
- अनिवार्य प्रकटीकरण (Mandatory Disclosure):
- धारा 4 के तहत सरकार को अपने बजट, निर्णय प्रक्रिया और व्यय का विवरण स्वयं प्रकाशित करना होता है।
- समयबद्ध जवाब (Time-bound Response):
- सामान्य मामलों में 30 दिन के भीतर,
- और जीवन/स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में 48 घंटे के भीतर सूचना देना अनिवार्य है।
- दंड प्रावधान (Penalty Provision):
- धारा 20 के अनुसार सूचना में देरी या अनुचित इनकार पर ₹25,000 तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
- नागरिक-नेता समानता (Citizen–Legislator Parity):
- कोई भी सूचना जो संसद को दी जा सकती है, वही नागरिकों से नहीं छिपाई जा सकती।
🌟 RTI की उपलब्धियाँ (Successes of RTI)
- नागरिक सशक्तिकरण:
- RTI ने आम नागरिक को सरकारी कामकाज पर सवाल पूछने का अधिकार दिया।
- 2005 से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक आवेदन दाखिल हुए हैं।
- भ्रष्टाचार का पर्दाफाश:
- RTI के माध्यम से 2G घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श हाउसिंग, MNREGA और PDS जैसी गड़बड़ियों का खुलासा हुआ।
- सुशासन को बढ़ावा:
- विभागों को निर्णय और फंड उपयोग में पारदर्शिता अपनानी पड़ी, जिससे सेवा वितरण में सुधार हुआ।
- महत्वपूर्ण आयोगी फैसले:
- RTI के तहत राजनीतिक दलों, प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), RBI और CJI का दफ्तर भी जवाबदेही के दायरे में आए।
- जनभागीदारी में वृद्धि:
- पेंशन, राशन, आवास जैसी योजनाओं में हाशिए के लोगों की पहुँच और अधिकार सुनिश्चित हुए।
⚠️ RTI की चुनौतियाँ (Challenges to RTI)
- संस्थागत पक्षाघात (Institutional Paralysis):
- केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में कई पद खाली हैं।
- कुछ राज्यों में मामलों की सुनवाई में 10–20 साल की देरी हो रही है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
- कई नियुक्तियाँ “रिटायरमेंट पोस्टिंग” की तरह होती हैं, जिससे स्वतंत्रता और निष्पक्षता कम होती है।
- दंड प्रवर्तन की कमी:
- केवल 1.2% मामलों में जुर्माना लगाया जाता है।
- अधिकारी समयसीमा या जवाबदेही से बच निकलते हैं।
- कानूनी कमजोरियाँ (Legal Dilution):
- RTI संशोधन अधिनियम, 2019 ने सूचना आयुक्तों की वेतन-भत्ते और कार्यकाल को सरकार के अधीन कर दिया।
- इससे आयोगों की स्वायत्तता कमजोर हुई।
- DPDPA 2023 का प्रभाव:
- डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम की धारा 44(3) ने RTI की धारा 8(1)(j) को संशोधित कर दिया।
- अब “व्यक्तिगत जानकारी” का खुलासा लगभग प्रतिबंधित हो गया है — जिससे जवाबदेही पर असर पड़ा।
- कार्यपालिका की अपारदर्शिता:
- बेरोजगारी, COVID मृत्यु दर, अपराध आँकड़े जैसे कई सरकारी डेटा सार्वजनिक नहीं किए जा रहे।
- मीडिया रिपोर्टों में इसे “No Data Available Government” कहा गया है।
- न्यायपालिका का नरम रुख:
- अदालतें अब सरकार को “निर्देश” देने के बजाय केवल “संकेत” देती हैं, जिससे RTI प्रवर्तन कमजोर हुआ है।
🔧 आगे की राह (Way Ahead)
- तुरंत नियुक्तियाँ:
- सभी आयोगों में रिक्त पद SC के 2019 आदेश के अनुसार समयबद्ध रूप से भरे जाएँ।
- संस्थागत स्वायत्तता:
- आयुक्तों का निश्चित कार्यकाल और वेतन स्थिरता बहाल की जाए, ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
- गोपनीयता और पारदर्शिता में संतुलन:
- DPDPA की धारा 44(3) की समीक्षा कर “जानने का अधिकार बनाम निजता के अधिकार” के बीच संतुलन बनाया जाए।
- डिजिटल एकीकरण:
- पूरे देश में ऑनलाइन RTI पोर्टल, ई-हियरिंग और सार्वजनिक डैशबोर्ड विकसित किए जाएँ।
- जन-जागरूकता और न्यायिक सक्रियता:
- नागरिक समाज, मीडिया और न्यायपालिका को RTI की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
🧭 निष्कर्ष (Conclusion)
20 साल बाद, RTI कानून भारत के लोकतंत्र की जीवंत लेकिन कमजोर नब्ज़ बन गया है।
यह अब भी उम्मीद की किरण है, परंतु संस्थागत ढिलाई, राजनीतिक हस्तक्षेप और नई कानूनी बाधाएँ इसकी आत्मा को क्षीण कर रही हैं।
RTI को पुनर्जीवित करने के लिए नए कानूनों की नहीं, बल्कि पुराने संकल्प की जरूरत है —
एक ऐसा संकल्प जो नागरिकों को सशक्त करे, संस्थानों को स्वतंत्र रखे,
और सत्ता से सवाल पूछने के लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा करे।
🎯 UPSC उपयोगिता (UPSC Relevance)
📍 GS Paper 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही
📍 Essay Paper: “Transparency and Accountability as Pillars of Democracy”
📍 Ethics Paper: सूचना का अधिकार और नैतिक शासन

