🇵🇰🇦🇫 पाकिस्तान–अफगानिस्तान तनाव: इतिहास, वर्तमान संकट और भविष्य की दिशा
✍️ भूमिका
हाल ही में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर हिंसा और तनाव ने एक बार फिर इस क्षेत्र की अस्थिरता को उजागर किया है।
यह विवाद केवल दो देशों के बीच सीमित नहीं है — बल्कि इसका प्रभाव पूरे दक्षिण और मध्य एशिया के राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक परिदृश्य पर पड़ता है।
दरअसल, यह समस्या ऐतिहासिक अविश्वास, ड्यूरंड रेखा (Durand Line) के विवाद और सीमा पार आतंकवाद की जटिल विरासत से जुड़ी है।
📜 ड्यूरंड रेखा: एक अधूरा इतिहास
साल 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच खींची गई ड्यूरंड रेखा ने पश्तून जनजातियों की भूमि को दो हिस्सों में बाँट दिया।
1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान ने इसे अपनी पश्चिमी सीमा घोषित किया, लेकिन अफगानिस्तान ने इसे औपनिवेशिक दबाव में थोपी गई रेखा बताते हुए अस्वीकार कर दिया।
सीमा के दोनों ओर पश्तून कबीले हैं, जिनके पारिवारिक और सांस्कृतिक रिश्ते बहुत गहरे हैं।
इसी कारण यह रेखा कभी भी स्थानीय स्तर पर स्वीकृत नहीं हो पाई, और आज भी यह पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में स्थायी अस्थिरता का स्रोत बनी हुई है।
⚔️ सीमा पर हालिया संघर्ष
हाल के महीनों में पाकिस्तान ने अफगान क्षेत्र में हवाई हमले किए, यह आरोप लगाते हुए कि TTP (Tehreek-e-Taliban Pakistan) के आतंकवादी काबुल में पनाह ले रहे हैं।
इसके जवाब में तालिबान बलों ने ड्यूरंड रेखा पर कई पाकिस्तानी चौकियों पर कब्जा कर लिया, जिससे दोनों ओर भारी हताहत हुए।
यह हिंसा केवल सुरक्षा मुद्दा नहीं है — यह दोनों देशों के बीच राजनैतिक अविश्वास और साझा हितों की कमी को भी उजागर करती है।
🧍♂️ मानवीय और आर्थिक संकट
सीमा झड़पों का सबसे बड़ा नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ता है।
- हजारों नागरिकों को विस्थापित होना पड़ता है।
- सीमा पार व्यापार और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होती है।
- खैबर पख्तूनख्वा और अफगान क्षेत्रों में व्यापारी भारी नुकसान झेलते हैं।
- आर्थिक तंगी और बेरोजगारी से स्थानीय युवाओं में कट्टरपंथ और आतंकी भर्ती की प्रवृत्ति बढ़ती है।
- सीमावर्ती जिलों में अस्पताल, स्कूल और शासन तंत्र का अभाव मानवीय संकट को और गहरा करता है।
🧩 नीति संबंधी चुनौतियाँ
पाकिस्तान के लिए यह संकट तीनहरी चुनौती बन चुका है —
- आतंकवाद,
- जन असंतोष,
- और आर्थिक गिरावट।
दूसरी ओर, अफगान तालिबान को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हुए पाकिस्तान से दूरी भी रखनी है, जो एक कूटनीतिक संतुलन का कठिन खेल है।
दोनों देशों के पास अभी तक कोई स्थायी संस्थागत व्यवस्था या सीमा प्रबंधन तंत्र नहीं है, जिससे विवादों का समाधान संभव हो सके।
बाहरी मध्यस्थता (जैसे अमेरिका, चीन, कतर) भी अक्सर अल्पकालिक और अस्थायी साबित होती है।
🌍 क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य
- चीन चाहता है कि उसकी CPEC परियोजना (चीन-पाक आर्थिक गलियारा) सुरक्षित रहे और अफगान भूमि से उइगर उग्रवाद न फैले।
- ईरान और मध्य एशिया के देश अफगानिस्तान से नशीली दवाओं की तस्करी और शरणार्थी प्रवाह से चिंतित हैं।
- अमेरिका अब भी इस क्षेत्र पर नजर बनाए हुए है — खासकर आतंकवाद और मानवीय स्थिरता के मुद्दों पर।
- सऊदी अरब और कतर जैसे खाड़ी देश समय-समय पर संवाद और शांति वार्ता की मेजबानी कर चुके हैं।
🇮🇳 भारत की रणनीतिक दृष्टि
भारत पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा पर हो रही घटनाओं को क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास नीति के दृष्टिकोण से देखता है।
- एक अस्थिर पाकिस्तान पूरे क्षेत्र में आतंकवाद फैलाने और आर्थिक गलियारों (जैसे चाबहार–मध्य एशिया कॉरिडोर) को प्रभावित कर सकता है।
- भारत की तालिबान सरकार से बातचीत संतुलित और व्यावहारिक रही है — मानवतावादी सहायता और बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण पर केंद्रित।
- भारत की प्राथमिकता यह है कि अफगानिस्तान दोबारा आतंक का गढ़ न बने।
- इस्लामाबाद और काबुल के बीच किसी भी तनाव का सीधा प्रभाव भारत की सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक हितों पर पड़ता है।
🚀 आगे की राह (Way Forward)
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए शांति की राह कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं।
नीचे कुछ ठोस सुझाव दिए जा सकते हैं —
- संयम और संवाद — दोनों देशों को पारस्परिक विश्वास के आधार पर सीमा विवाद सुलझाना होगा।
- संयुक्त सीमा आयोग बनाकर सुरक्षा और व्यापार प्रबंधन के लिए संस्थागत ढाँचा तैयार किया जाए।
- एकतरफा हमलों से परहेज कर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन किया जाए।
- पश्तून क्षेत्रों में स्थानीय शासन को सशक्त कर लोगों की असंतुष्टि दूर की जाए।
- आतंकी गुटों पर निर्भरता घटाकर उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में लाने के प्रयास हों।
- सीमा व्यापार और विकास परियोजनाओं का विस्तार किया जाए ताकि सीमांत समुदायों को स्थिर आजीविका मिले।
- SAARC और SCO जैसे मंचों को पुनर्जीवित कर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता को बढ़ावा दिया जाए।
- भारत को विकास सहायता प्रदान करते हुए तटस्थ रहना चाहिए और पाकिस्तान-अफगान विवादों से दूर रहना चाहिए।
🔍 निष्कर्ष
पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा केवल एक रेखा नहीं, बल्कि इतिहास, राजनीति और मानव पीड़ा का संगम है।
जब तक दोनों देश पारस्परिक सम्मान, संवाद और विकास के मार्ग पर नहीं चलते, तब तक दक्षिण एशिया में स्थिरता केवल एक सपना बनी रहेगी।
UPSC & Current Affairs Relevance
यह विषय निम्नलिखित UPSC सेक्शनों से जुड़ा है:
- GS Paper 2 – International Relations
- GS Paper 3 – Security Issues
- Essay Paper – South Asian Geopolitics and Stability

