राष्ट्रीय डाक-तार दिवस: “डाकिया डाक लाया” की अमर गूंज — 10 अक्टूबर

राष्ट्रीय डाक-तार दिवस: “डाकिया डाक लाया” की अमर गूंज — 10 अक्टूबर

राष्ट्रीय डाक-तार दिवस

‘डाकिया डाक लाया’ की अमर गूंज

हर साल 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक-तार दिवस आता है, और इसके साथ लौट आती हैं वो पुरानी यादें, जब ‘डाकिया डाक लाया’ की पुकार हर गली में गूंजती थी। यह दिन सिर्फ डाक सेवा का उत्सव नहीं, बल्कि उन भावनाओं का सम्मान है, जो एक कागज के टुकड़े में सिमटी होती थीं। जब न मोबाइल था, न इंटरनेट की रफ्तार, तब चिट्ठी ही थी जो दिलों को जोड़ती थी, मीलों की दूरी को पल में मिटाती थी। आइए, इस खास दिन को कविता और दोहों के रंग में और जीवंत करें।

डाकिया लाया पत्र प्रिय, मन में उमंग भरी,
स्याही में बंधी बातें, दिल की राह गहरी।

सोचिए उस दौर को—गांव की पगडंडियों पर साइकिल की घंटी, खाकी वर्दी में डाकिया, और उसकी थैली में अनगिनत कहानियां। कोई प्रेमी अपनी प्रिया को प्यार भरा खत लिखता, कोई सैनिक सीमा से मां को सलाम भेजता, तो कोई दादी अपनी पोती की चिट्ठी का इंतजार करती। डाकिया सिर्फ पत्रवाहक नहीं, भावनाओं का संदेशवाहक था। उसकी आवाज सुनते ही बच्चे, बूढ़े, जवान—सबके चेहरों पर उत्साह की लहर दौड़ जाती। चिट्ठी खोलने का वो पल, जब कागज की सिलवटों से शब्द बाहर झांकते, आज भी दिल को छू लेता है।

साइकिल की घंटी बजी, गली में डाकिया आया,
लिफाफे में बंद खुशी, प्यार का पैगाम लाया।
कभी हंसी, कभी आंसुओं का मेला सजता था,
एक कागज में सारा जहां, दिल से दिल मिलता था।

1854 में शुरू हुई भारतीय डाक सेवा आज दुनिया के सबसे बड़े डाक नेटवर्क में से एक है। तब एक पत्र लिखना कला था। शब्दों को संजोना, भावनाओं को स्याही में उतारना, फिर डाकघर की कतार में खड़े होकर उसे भेजना—यह सब एक अनुष्ठान सा था। जवाब का इंतजार हफ्तों तक चलता, पर उस इंतजार में थी एक अनोखी मिठास। आज का डिजिटल युग, जहां एक ‘सेंड’ बटन से बात पूरी हो जाती है, उस मिठास को कहां समझ पाता है? व्हाट्सएप, ईमेल, वीडियो कॉल ने चिट्ठियों को पीछे छोड़ दिया, पर क्या वे उस गर्मजोशी को छू पाए, जो हस्तलिखित पत्र में बसती थी?

डिजिटल की दुनिया दौड़े, खत की बात न भाए,
कागज पर लिखा दिल का हाल, सदा सुकून दिलाए।

आज भी चिट्ठियों का जादू खत्म नहीं हुआ। बुजुर्ग अपने पुराने लिफाफों को संभालकर रखते हैं, जैसे कोई अनमोल खजाना। नई पीढ़ी में चिट्ठी लिखना अब ‘विंटेज’ ट्रेंड बन गया है। जन्मदिन, शादी, या खास मौकों पर हस्तलिखित पत्र भेजना जैसे पुराने जमाने को फिर से जीना है। यह डिजिटल थकान से उबरने का एक सुंदर तरीका है, जहां लोग फिर से उस धीमे, भावनात्मक स्पर्श को महसूस करना चाहते हैं।

आज भारतीय डाक विभाग सिर्फ चिट्ठियों तक सीमित नहीं। यह डिजिटल इंडिया का सशक्त हिस्सा है। स्पीड पोस्ट, पार्सल, बैंकिंग, ई-कॉमर्स डिलीवरी, और इलेक्ट्रॉनिक मनी ट्रांसफर जैसी सेवाओं ने इसे आधुनिक बनाया है। डाकिया अब केवल खत नहीं, बल्कि भारत की प्रगति की रफ्तार भी लेकर आता है। फिर भी, राष्ट्रीय डाक-तार दिवस हमें याद दिलाता है कि तकनीक कितनी भी आगे बढ़े, एक चिट्ठी का भावनात्मक स्पर्श हमेशा अनमोल रहेगा।

खत में बंधी हैं यादें, पुराने प्यार की बातें,
स्याही की वो गंध आज भी, दिल में बसी है रातें।
डाकिए की पुकार सुनो, फिर से लिख दो चिट्ठी,
डिजिटल की दुनिया में भी, बस्ती है वो मिठास सच्ची।

तो इस 10 अक्टूबर, एक पल रुकें। एक पुराना पत्र उठाएं या किसी अपने को हस्तलिखित चिट्ठी लिखें। क्योंकि कुछ शब्द, जो कागज पर उतरते हैं, वे दिल से दिल तक का सफर तय करते हैं। डिजिटल दुनिया की रफ्तार में भी, चिट्ठी की वो धीमी, मधुर बातें आज भी दिल को सुकून देती हैं।