📈 मुद्रास्फीति से मिले सबक: भारतीय रिज़र्व बैंक को अपने पूर्वानुमानों में अधिक सटीकता लानी होगी
सितंबर 2025 के खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) के आँकड़े 1.54% पर पहुँच गए —
जो पिछले 99 महीनों का सबसे निचला स्तर है।
पहली नज़र में यह एक सकारात्मक संकेत प्रतीत होता है,
किन्तु गहराई से देखने पर यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए
कुछ चिंताजनक संदेश भी देता है।
🏦 RBI का लक्ष्य और मुद्रास्फीति का परिदृश्य
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का प्रमुख उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।
इसके लिए उसने मुद्रास्फीति की स्वीकार्य सीमा 2% से 6% तय की है,
जबकि आदर्श स्तर 4% माना गया है।
हाल के महीनों में मुद्रास्फीति लगातार घटती जा रही है,
और यह अब RBI के “आराम क्षेत्र” (Comfort Zone) के निचले छोर पर पहुँच चुकी है।
यह स्थिति दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था में मांग की रफ्तार धीमी हो गई है,
जबकि आपूर्ति (Supply) अपेक्षाकृत अधिक है।
⚖️ क्या कम मुद्रास्फीति हमेशा अच्छी होती है?
सामान्यतः कम मुद्रास्फीति को एक स्वस्थ संकेत माना जाता है,
क्योंकि इससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ती है।
लेकिन जब यह दर अत्यधिक नीचे चली जाती है,
तो यह दर्शाती है कि लोग खर्च करने से बच रहे हैं,
बाजार में माँग घट रही है,
और उद्योगों के लिए उत्पादन बनाए रखना कठिन हो रहा है।
इस स्थिति से
- रोज़गार सृजन (Employment Generation) प्रभावित होता है,
- निवेश में कमी आती है,
और अंततः आर्थिक विकास की गति (Economic Growth Rate) धीमी पड़ जाती है।
💰 सरकार और RBI के सामने चुनौती
भारत सरकार ने घरेलू खपत को प्रोत्साहित करने के लिए
आयकर (Income Tax) और GST दरों में रियायत दी है।
इसके अलावा डायरेक्ट टैक्स रिबेट्स के माध्यम से लोगों को अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित किया गया है।
फिर भी, इन नीतियों का प्रभाव सीमित रहा है।
अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि
निजी क्षेत्र (Private Sector) में निवेश को कैसे बढ़ाया जाए,
ताकि वास्तविक मांग (Real Demand) में वृद्धि हो।
🏦 मौद्रिक नीति की भूमिका: ब्याज दरों में समायोजन
RBI के पास अब सबसे प्रभावी उपाय यही है कि वह
नीतिगत ब्याज दरों (Repo Rate) में थोड़ी कटौती करे।
ब्याज दर घटने से
- उद्योगों को सस्ता ऋण मिलेगा,
- उत्पादन बढ़ेगा,
और रोज़गार तथा निवेश दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
यह कदम मुद्रास्फीति को संतुलित रखते हुए
आर्थिक वृद्धि को भी गति दे सकता है।
📉 पूर्वानुमान में त्रुटि — एक गंभीर संकेत
RBI की सबसे बड़ी कमजोरी हाल के समय में उसके
पूर्वानुमान (Forecasting) की सटीकता रही है।
अप्रैल 2025 में बैंक ने अनुमान लगाया था कि वर्ष की औसत मुद्रास्फीति लगभग 4% रहेगी,
किन्तु सितंबर तक यह घटकर 2.6% रह गई।
इतनी बड़ी विचलन यह दर्शाती है कि
RBI की पूर्वानुमान पद्धति (Forecasting Mechanism) में कुछ सुधार की आवश्यकता है।
क्योंकि यदि नीति-निर्माण के आधार में ही अनिश्चितता होगी,
तो उसके परिणाम भी असंगत रहेंगे।
🧩 आगे की दिशा — संतुलन की नीति आवश्यक
वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय अर्थव्यवस्था को
दोहरा संतुलन (Dual Balance) साधना होगा —
एक ओर मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना,
और दूसरी ओर निवेश तथा मांग को प्रोत्साहित करना।
RBI को चाहिए कि वह
- अपने पूर्वानुमानों को अधिक वैज्ञानिक बनाए,
- वास्तविक आर्थिक संकेतकों (Real Indicators) का गहन विश्लेषण करे,
और - मौद्रिक नीति को समयानुकूल लचीलापन (Flexibility) प्रदान करे।
📘 UPSC दृष्टिकोण से उपयोगी बिंदु
| विषय | विवरण |
|---|---|
| पेपर | GS Paper-III (अर्थव्यवस्था / Economy) |
| मुख्य टॉपिक | Monetary Policy, Inflation Targeting, Forecasting Accuracy |
| कीवर्ड्स | Price Stability, Demand–Supply Gap, Repo Rate, RBI Forecast Error |
| संभावित प्रश्न | “RBI की मुद्रास्फीति-आधारित नीति के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?” |
💬 निष्कर्ष
कम मुद्रास्फीति का अर्थ हमेशा स्थिरता नहीं होता —
कभी-कभी यह आर्थिक सुस्ती (Economic Slowdown) का संकेत भी होती है।
“एक सशक्त अर्थव्यवस्था वही है जहाँ मूल्य स्थिर हों,
पर निवेश और उपभोग की गति निरंतर बनी रहे।”
भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए यह समय अपनी नीति और पूर्वानुमान प्रणाली दोनों को
अधिक सटीक, संवेदनशील और संतुलित बनाने का है।
यही भारत को एक स्थिर और प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की ओर ले जाएगा।

