Day 8 : UPPCS Mains 2025 (Answer Writing Challenge)





गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में अनेक क्षेत्रीय शक्तियाँ उभरीं — उत्तर में हर्षवर्धन, दक्कन में चालुक्य, और दक्षिण में पल्लव।
इन तीनों वंशों ने भारतीय कला, स्थापत्य और संस्कृति को नयी दिशा दी।


  • गुप्त परंपरा को आगे बढ़ाया।
  • नालंदा और कन्नौज में विहार, स्तूप और मंदिरों का निर्माण।
  • बौद्ध कला और शिक्षा के संरक्षणकर्ता।
  • बादामी, ऐहोले, पट्टदकल में मंदिर निर्माण।
  • “वेसर शैली” का विकास — नागर और द्रविड़ का मिश्रण।
  • विरुपाक्ष मंदिर (पट्टदकल) एवं बादामी गुफा मंदिर उत्कृष्ट उदाहरण।
  • कांची और महाबलीपुरम में स्थापत्य का उत्कर्ष।
  • पंचरथ और शोर मंदिर प्रारंभिक द्रविड़ शैली के प्रतीक।
  • चट्टान-कट मंदिरों से संरचनात्मक पत्थर मंदिरों की ओर संक्रमण।

हर्ष, चालुक्य और पल्लव वंशों की स्थापत्य परंपराओं ने भारतीय मंदिर कला को क्षेत्रीय विविधता के साथ एकीकृत स्वरूप प्रदान किया —
जिससे आगे चलकर चोल और विजयनगर काल की भव्य स्थापत्य शैली की नींव पड़ी।




पल्लव वंश (6वीं–9वीं शताब्दी) दक्षिण भारत की स्थापत्य कला के अग्रदूत माने जाते हैं।
इन्होंने द्रविड़ मंदिर शैली की नींव रखी जो बाद में चोल काल में परिपक्व रूप में विकसित हुई।


  • महेन्द्रवर्मन प्रथम द्वारा मंडगपट्टू, त्रिची, महेंद्रगिरि आदि में गुफा मंदिरों का निर्माण।
  • यह काल गुफा से संरचनात्मक मंदिरों की ओर संक्रमण का प्रतीक था।
  • नरसिंहवर्मन प्रथम (ममल्ल) द्वारा महाबलीपुरम में पंचरथ निर्माण।
  • एक ही पत्थर को तराशकर बनाए गए ये मंदिर स्थापत्य प्रयोगशीलता का प्रतीक हैं।
  • नरसिंहवर्मन द्वितीय (राजसिंह) के काल में कांचीपुरम का कैलासनाथ मंदिर व शोर मंदिर (महाबलीपुरम)।
  • द्रविड़ शैली की प्रमुख विशेषताएँ — गर्भगृह, मंडप, विमाना और गोपुरम की शुरुआत।

पल्लवों ने भारतीय मंदिर स्थापत्य को ठोस आधार प्रदान किया —
चट्टान-कट मंदिरों से लेकर पूर्ण विकसित संरचनात्मक द्रविड़ शैली तक की यह यात्रा आगे चलकर चोल स्थापत्य के उत्कर्ष में परिणत हुई।


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