🌍 महत्वपूर्ण खनिजों की भू-राजनीति और भारत की रणनीति (China vs India Rare Earth War Begins)
पाठ्यक्रम: GS Paper 2 | IR | विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति के प्रभाव
स्रोत: live mint
🔹 प्रसंग (Context)
21वीं सदी की तकनीकी दौड़ में दुर्लभ पृथ्वी तत्व और महत्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) नए “तेल” के रूप में उभर रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनल, चिप निर्माण और रक्षा उद्योग में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हाल के वर्षों में इन खनिजों को लेकर वैश्विक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, खासकर तब जब चीन ने इस क्षेत्र पर लगभग पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया है।
अमेरिका–ऑस्ट्रेलिया समझौते और भारत की क्रिटिकल मिनरल्स आत्मनिर्भरता की नई पहल ने इस विषय को और भी केंद्र में ला दिया है।
🧭 1. चीन का खनिज प्रभुत्व: रणनीतिक नियंत्रण की कहानी
चीन ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को अपनी भू-राजनीतिक शक्ति का आधार बना लिया है।
- खनन और प्रसंस्करण पर नियंत्रण: चीन के पास लगभग 70% खनन और 90% प्रोसेसिंग क्षमता है — जिससे वह मूल्य और आपूर्ति दोनों नियंत्रित करता है।
- आर्थिक हथियार के रूप में प्रयोग: 2010 में जापान पर निर्यात प्रतिबंध लगाकर चीन ने दिखाया कि ये खनिज राजनीतिक दबाव के औज़ार बन सकते हैं।
- राज्य–पूंजी गठजोड़: सरकारी कंपनियों को सब्सिडी और संसाधन-समृद्ध देशों (कांगो, म्यांमार) में खदानें खरीदने की अनुमति देकर चीन ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला में ऊर्ध्वाधर नियंत्रण (Vertical Control) प्राप्त किया है।
- तकनीक और उद्योग का एकीकरण: EVs, रक्षा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में चीन ने खनन से मैन्युफैक्चरिंग तक की पूरी शृंखला अपने नियंत्रण में रखी है।
- खनिजों का हथियारीकरण (Weaponization): गैलियम और जर्मेनियम जैसे धातुओं पर निर्यात प्रतिबंध इसका ताज़ा उदाहरण हैं।
🇮🇳 2. भारत की उभरती खनिज महत्वाकांक्षा (India’s Emerging Ambition)
भारत अब इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
- भूगर्भीय सामर्थ्य: भारत के पास वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी भंडार का लगभग 6% हिस्सा है (मुख्यतः आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में)।
- उत्पादन अंतर: संसाधनों के बावजूद, भारत का वैश्विक उत्पादन में योगदान 1% से भी कम है।
- नीतिगत ढाँचा:
- क्रिटिकल मिनरल मिशन (2023) – घरेलू अन्वेषण और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए।
- काबिल (KABIL) – विदेशी खदानों में हिस्सेदारी प्राप्त करने हेतु भारत का संयुक्त उपक्रम।
- नई खोजें: जम्मू-कश्मीर (रेयासी) में लिथियम की खोज ने भारत की स्वच्छ ऊर्जा और बैटरी क्रांति को नई दिशा दी है।
- ज्ञान साझेदारी: IITs, CSIR, और GSI जैसे संस्थान पर्यावरण-अनुकूल खनन और पुनर्चक्रण तकनीक विकसित करने में जुटे हैं।
🌐 3. बदलता वैश्विक खनिज परिदृश्य (Evolving Global Mineral Order)
दुनिया अब “चीन-मुक्त” आपूर्ति शृंखला की ओर बढ़ रही है।
- मित्र देशों की रणनीति: अमेरिका–ऑस्ट्रेलिया समझौता लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ्स की स्वतंत्र सप्लाई चेन के लिए हुआ है।
- इंडो-पैसिफिक समन्वय: क्वाड (Quad) देशों – भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका – ने Critical Minerals Working Group बनाकर सहयोग बढ़ाया है।
- खनिज कूटनीति: भारत ने नामिबिया, अर्जेंटीना, और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ साझेदारी कर अपने खनिज सुरक्षा नेटवर्क को मजबूत किया है।
- सामग्री नवाचार: ग्राफीन और 2D मटेरियल्स जैसे विकल्पों पर निवेश हो रहा है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो।
- हरित दिशा (Green Shift): अब फोकस ग्रीन माइनिंग और सर्कुलर इकोनॉमी पर है ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
⚙️ 4. भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges)
हालाँकि संभावनाएँ अपार हैं, लेकिन कुछ बाधाएँ गंभीर हैं —
- पर्यावरणीय लागत: दुर्लभ पृथ्वी खनन से रेडियोधर्मी व रासायनिक अपशिष्ट निकलता है जो जल, मिट्टी और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- तकनीकी पिछड़ापन: भारत के पास आधुनिक रिफाइनिंग और मेटलर्जिकल सुविधाओं की कमी है।
- वित्तीय बाधाएँ: उच्च पूंजी और जोखिम के कारण निजी निवेश सीमित है।
- राजनीतिक अस्थिरता: अफ्रीका और अफगानिस्तान जैसे क्षेत्रों में संसाधन अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों में हैं।
- चीनी प्रतिकार: चीन की निर्यात नीति और स्टॉकपाइलिंग रणनीति से वैश्विक बाजार असंतुलित रहता है।
🪔 5. रणनीतिक खनिज संप्रभुता का रोडमैप (India’s Path to Mineral Sovereignty)
भारत को आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहयोग का संतुलन साधना होगा —
- 🇮🇳 घरेलू प्रसंस्करण: देश में रिफाइनिंग और R&D क्षमता विकसित की जाए।
- 🌍 विदेशी साझेदारी: काबिल (KABIL) के ज़रिए अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में खदानें सुनिश्चित की जाएँ।
- 🔁 सर्कुलर इकोनॉमी: Urban Mining के ज़रिए पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ पुनः प्राप्त करना।
- 🌱 ग्रीन माइनिंग: जल-क्षम, कम-उत्सर्जन तकनीक के साथ सतत खनन सुनिश्चित करना।
- ⚖️ संतुलित आत्मनिर्भरता: वैश्विक सहयोग + आत्मनिर्भर भारत नीति का संयोजन ही स्थायी समाधान है।
✨ निष्कर्ष (Conclusion)
महत्वपूर्ण खनिज 21वीं सदी के “नए तेल” हैं — जो भविष्य की ऊर्जा, तकनीक और सुरक्षा का आधार बनेंगे।
भारत के लिए यह समय है कि वह नवाचार (Innovation), सततता (Sustainability) और कूटनीति (Diplomacy) को साथ लेकर चले।
यदि भारत चीन पर निर्भरता घटाते हुए हरित विकास और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला स्थापित कर पाता है, तो वह वैश्विक खनिज अर्थव्यवस्था में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

