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वर्ष 2024 की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आजादी के 100 साल पूरे होने तक देश को 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले एक विकसित राष्ट्र में बदलने से जुड़े एक रोडमैप का अनावरण किए जाने की उम्मीद है। विजन इंडिया@2047 योजना, जैसाकि इसे आधिकारिक तौर पर नाम दिया गया है, पर लगभग दो सालों से काम चल रहा है और इसमें विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारी इस बात पर विचार-मंथन कर रहे हैं कि देश को विकास के वर्तमान स्तर से उस मुकाम तक कैसे ले जाया जाए जहां वह होना चाहता है। नीति आयोग, इस विजन दस्तावेज को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में, जल्द ही अपने केंद्रीय विचारों व लक्ष्यों को विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा, ऐप्पल प्रमुख टिम कुक के साथ-साथ भारतीय उद्योगपतियों एवं विचारकों सहित सभी क्षेत्रों के शीर्ष प्रतिभाओं के सामने उन्हें और बेहतर बनाने तथा किसी भी कमजोर नुक्ते की ओर ध्यान दिलाने के मकसद से पेश करेगा। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले आने वाले, इस योजना को संभावित मतदाताओं के लिए सरकार के नीतिगत वादे के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन चुनावी नतीजों से परे, भविष्य की सरकारों के लिए इस व्यापक एजेंडे के प्रति एक गंभीर नजरिया रखना अच्छा रहेगा। वर्ष 1991, जब वैश्विक आर्थिक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी महज 1.1 फीसदी थी, से उभरते हुए आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में 3.5 फीसदी की हिस्सेदारी तक पहुंच जाने का इस देश का उत्थान विभिन्न राजनीतिक विचारधारा वाली सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर सुधार और उदारीकरण के एजेंडे पर अड़े रहने की वजह से संभव हुआ है। सुधारों की रफ्तार और जोश में रुकावटें वर्तमान गठबंधन-स्वतंत्र शासन समेत सभी सरकारों के दौरान दिखाई देती रही हैं, खासकर भूमि और श्रम जैसे कारक बाजारों में जरुरी पेचीदा बदलावों के मामले में।
अंतिम योजना में ऐसे चुनौतीपूर्ण सुधारों को पूरा करने में मदद करने और भारत की विकास कहानी पर दांव लगाने के इच्छुक वैश्विक निवेशकों के लिए नीतिगत निश्चितता सुनिश्चित करने से जुड़े कुछ विचारों का समावेश होना चाहिए। सरकार की भूमिका को एक ‘माइक्रो-मैनेजर’ के बजाय एक समर्थक के रूप में सीमित करना एक और पहलू है, जो महत्वपूर्ण होगा। ऐसा खासकर इसलिए क्योंकि मसला चाहे उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन का हो या आयात लाइसेंसिंग या फिर अत्यधिक उत्साही कराधान का, हाल के कुछ फैसलों ने अतीत की आदतों की ओर इशारा किया है। इस विजन दस्तावेज के एक घोषित फोकस क्षेत्र, जो इसके कार्य बिंदुओं और परिणाम लक्ष्यों को दो अवधियों - 2030, और तब से लेकर 2047 तक की 17 वर्ष की अवधि - में विभाजित करता है, का इरादा यह सुनिश्चित करना है कि भारत अब से कुछ सालों के बाद मध्यम आय के जाल में न फंस जाए। इसके लिए अर्थव्यवस्था में खेतों से लेकर कारखानों तक में लंबे अरसे से चल रहे संरचनात्मक बदलाव को तेज करने और आय में असमानता के व्यापक रूझान को रोकने की जरुरत है। अब जबकि पंचवर्षीय योजनाओं को तिलांजलि दे दी गई है, उभरते वैश्विक रुझानों और भारी नुकसान पहुंचाने वाली अप्रत्याशित संकटों (ब्लैक स्वान) के मद्देनजर लक्ष्यों को नए सिरे से व्यवस्थित करने के लिए 2047 की योजना की मुनासिब अंतराल पर फिर से समीक्षा करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। वर्ष 2030 से लेकर 2047 के बीच 9 फीसदी की ऊंची विकास दर का लक्ष्य काबिलेतारीफ है, लेकिन वैकल्पिक परिदृश्यों पर ध्यान देना और जरुरत पड़ने पर रास्ता बदलना भी उचित रहेगा।