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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की रूस यात्रा के संभावित द्विपक्षीय और भू-राजनैतिक नतीजे रहे। ब्रिक्स समूह के उच्चस्तरीय सुरक्षा अधिकारियों की बैठक के दौरान, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के विदेश मंत्री एवं चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारी वांग यी के साथ उनकी आमने-सामने की बैठक भी सुर्खियों में रही। ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की यह बैठक अक्टूबर में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले हुई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, मिस्र तथा इथियोपिया के नेता 2023 में इस समूह के विस्तार के बाद पहली बार एक साथ आयेंगे। डोभाल-वांग की बैठक भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं थी। खासकर, इस तथ्य के मद्देनजर कि ये दोनों उच्चस्तरीय अधिकारी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चार साल पुराने सैन्य गतिरोध को दूर करने के लिए भारत और चीन के बीच बढ़ते संपर्क की पृष्ठभूमि में मिल रहे थे। एलएसी पर सैनिकों की पूर्ण वापसी के "तकाजे" के साथ "अपने प्रयासों को दोगुना करने का उनका फैसला यह इंगित करता है कि उन्हें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में संभावित मोदी-शी मुलाकात से पहले इस दिशा में प्रगति होने की उम्मीद है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की यह टिप्पणी कि सैनिकों की 75 फीसदी वापसी पूरी हो चुकी है, चीन के साथ दुश्मनी खत्म करने के सरकार के दृढ़ संकल्प की ओर इशारा करती है। हालांकि, हकीकत में एलएसी पर 2020 से पहले वाली स्थिति की पुनर्बहाली शायद ही देखने को मिले। अंत में, डोभाल की पुतिन से मुलाकात हुई, जो प्रोटोकॉल संबंधी एक विरला अपवाद था। श्री डोभाल ने टिप्पणी की कि उन्हें श्री मोदी ने पुतिन को उनकी यूक्रेन यात्रा के बारे में "व्यक्तिगत रूप से" जानकारी देने के लिए भेजा है। इसका मतलब यह हो सकता है कि भारत शांति स्थापित करने की दिशा में मध्यस्थ की कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रहा है।
अगर सरकार वाकई में ऐसी किसी भूमिका के प्रति गंभीर है, तो यह साफ होना चाहिए कि इसमें क्या कुछ शामिल है। अधिकारियों ने भले ही बार-बार यह कहा है कि भारत ने युद्ध के दौरान रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देशों के बीच "संदेश पहुंचाया", वहीं मध्यस्थता के क्रम में भारत को नतीजे हासिल करने के लिए काफी सद्भावना, वक्त और धैर्य खर्च करने की जरूरत होगी। तुर्किये, इंडोनेशिया और हंगरी 2022 के हमले के बाद से दोनों पक्षों से बात करते रहे हैं और अब यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोडिमिर जेलेंस्की, पुतिन, बर्गेनस्टॉक विज्ञप्ति और यहां तक कि ब्राजील तथा चीन द्वारा दिए गए छह-सूत्री प्रस्ताव समेत शांति के कई प्रस्ताव सामने हैं। यूक्रेन का कुर्क पर धावा, रूस के मिसाइल हमले और अमेरिकी व ब्रिटिश हार्डवेयर का इस्तेमाल करके रूस पर लंबी दूरी के हमले करने की इजाजत देने की जेलेंस्की की लगातार मांग सहित टकराव बढ़ने के अशुभ संकेतों के बीच यह संघर्ष स्थिर नहीं है। इस महीने संयुक्त राष्ट्र की बैठकों, क्वाड शिखर सम्मेलन तथा संभवतः श्री जेलेंस्की के साथ एक और बैठक के लिए मोदी की अमेरिका यात्रा, उसके बाद ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए रूस की उनकी यात्रा काफी ज़िम्मेदारीपूर्ण होगी, लेकिन शांति स्थापना दिशा में भारत के प्रयास अयथार्थवादी अपेक्षाओं के बोझ के तले दबे हुए नहीं होने चाहिए।
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