Live Classes
जम्मू एवं कश्मीर जैसे संकटग्रस्त सीमावर्ती प्रांत में, सुरक्षा बलों को न सिर्फ आतंकवाद से निपटना होता है, बल्कि सटीक एवं उचित तरीके से आतंकवाद विरोधी अभियानों को भी अंजाम देना होता है। पुंछ और राजौरी जिलों वाली पीर पंजाल घाटी के जंगली इलाकों में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच हुए भीषण मुठभेड़ों में इस साल 28 सैनिकों की मौत हुई है। बीते 21 दिसंबर को सेना के काफिले पर घातक हमले के बाद पुंछ-राजौरी इलाके में सेना द्वारा हिरासत में लिए गए तीन नागरिकों की मौत और सुरक्षा बलों द्वारा कथित यातना की वजह से पांच अन्य नागरिकों के बुरी तरह घायल होने का तथ्य वहां अपनाई जा रही उग्रवाद विरोधी रणनीति पर एक गहरा धब्बा है। आतंकवादी हमलों के जवाब में आम नागरिकों को निशाना बनाने वाली सुरक्षा बलों की ऐसी जघन्य कार्रवाइयां दो लिहाज से साफ तौर पर समस्याजनक हैं। पहला, यह उस शासन की अलोकप्रियता में इजाफा करता है जो उस केंद्र-शासित प्रदेश में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित नहीं हुआ है। वहां आधे दशक से भी ज्यादा समय से प्रांतीय चुनाव नहीं हुए हैं। यह उस इलाके में आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के खिलाफ एक झटका है जो कश्मीर घाटी के मुकाबले अपेक्षाकृत ज्यादा शांत रहा है। दरअसल, पीर पंजाल इलाका डेढ़ दशक तक अपेक्षाकृत शांत रहने के बाद पिछले दो वर्षों के दौरान आतंकवाद का सामना कर रहा है। पिछले सप्ताह घात लगाकर किए गए हमले के बाद जिस तरह की उग्रवाद विरोधी कार्रवाई की गई, उससे उस इलाके के निवासियों में असंतोष पैदा हुआ है जो निकट अतीत में उग्रवाद का समर्थक नहीं रहा है।
भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ छेड़े गए विषम युद्ध में उग्रवादियों का एक मकसद सुरक्षा बलों को नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए उकसाना और नागरिकों में इसे लेकर पनपी शिकायतों एवं आक्रोश का इस्तेमाल करके अपना समर्थन आधार बढ़ाना है। सुरक्षा बलों की ऐसी कार्रवाइयां आतंकवादियों और सीमा-पार बैठे उनके आकाओं के हाथों में खेलने जैसी हैं। दूसरा, ताकत या हिंसा की वैधता और राज्य द्वारा इसका इस्तेमाल कार्रवाईयों की न्यायसंगतता पर निर्भर करता है। बिना किसी वजह के आम नागरिकों को निशाना बनाकर हिंसा का अंधाधुंध इस्तेमाल किए जाने से लोगों के जेहन में उस वैधता के लेकर सवाल उठने लगते हैं। आम नागरिकों की मौत के बाद जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है और सेना ने जांच का वादा करते हुए तीन वरिष्ठ अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया है। इन दोनों एजेंसियों को अब त्वरित और दृढ़ तरीके से न्याय देना होगा। घाटी में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा “फर्जी मुठभेड़” से होने वाली मौतों और यातना के चलते सार्वजनिक आक्रोश के अलावा उग्रवाद की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है जो कानून और व्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद और जनता के गुस्से की समस्या से निपटने के लिए बिना किसी रोक-टोक के सुरक्षा-केंद्रित रवैया अपनाने की कोशिश की है। उग्रवाद-विरोधी कार्रवाई के नाम पर बार-बार होने वाले अधिकारों के उल्लंघन और अपराध इस बात के साफ सबूत हैं कि यह नजरिया कामयाब नहीं हो पा रहा है।