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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के जरिए डाले गये मतों की ‘पेपर ट्रेल’ के 100 फीसदी सत्यापन की मांग सुप्रीम कोर्ट द्वारा ठुकरा दिये जाने में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि वर्तमान सत्यापन प्रणाली किसी लाइलाज खामी से ग्रसित है। पीठ के दो एकमत फैसलों ने उस विश्वास को दोहराया है जो न्यायपालिका ने चुनाव प्रक्रिया की ईमानदारी में अब तक बनाये रखा है, खासकर ‘वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल’ या वीवीपैट लाये जाने के बाद। इस प्रक्रिया में, पीठ ने कागज के मतपत्रों (पेपर बैलेट) की ओर लौटने के विचार को भी खारिज कर दिया, क्योंकि इस तरह का कदम वास्तव में प्रतिगामी होगा और पेपर बैलेट से जुड़े जोखिमों के खात्मे से हुए फायदों को निष्फल बनायेगा। यह पहली बार नहीं है जब शीर्ष अदालत ने स्थापित प्रणाली में दखलअंदाजी करने से इनकार किया है - इससे पहले एक मामले में उसने ‘पेपर ट्रेल’ के 50 फीसदी सत्यापन और एक अन्य मामले में 100 फीसदी सत्यापन का का आदेश देने से मना किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका का इस्तेमाल वर्तमान प्रणाली में मौजूद प्रशासनिक और तकनीकी सुरक्षात्मक-उपायों की समीक्षा करने के लिए किया और ऐसा कुछ नहीं पाया जो इसमें उसके विश्वास को कमजोर करता हो। अदालत द्वारा दिये गये दो निर्देश दूसरी गंभीर आशंकाओं से निपटने के लिए हैं। उसने नतीजों के एलान के बाद 45 दिनों तक ‘सिंबल लोडिंग यूनिटों’ को महफूज रखने को कहा है। उसने यह भी कहा है कि हारने वाले दो शीर्ष उम्मीदवार प्रति विधानसभा क्षेत्र पांच फीसदी ईवीएम के माइक्रो-कंट्रोलरों के सत्यापन की मांग कर सकते हैं, ताकि अगर कोई छेड़छाड़ हुई हो तो वह पकड़ में आ सके।
वर्ष 2013 के एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के लिए ‘पेपर ट्रेल’ एक अनिवार्य जरूरत है”। एक अन्य मामले में, उसने वीवीपैट सत्यापन के लिए मतदान केंद्रों की संख्या प्रति विधानसभा क्षेत्र या खंड में एक से बढ़ाकर पांच करने का पक्ष लिया। ‘पेपर ऑडिट ट्रेल’ इन आशंकाओं के जवाब में लायी गयी कि मतदाताओं के पास यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं था कि उनका मत सही-सही दर्ज हुआ या नहीं। यह थोड़ा विडंबनापूर्ण है कि इस तरह के डर से निपटने के लिए जो सत्यापन प्रणाली लायी गयी वह खुद विवाद का विषय बन गयी है कि ‘पेपर ट्रेल’ का किस हद तक सत्यापन किया जाए। अपनी राय में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने ये सुझाव दर्ज किये हैं कि वीवीपैट पर्चियों को मशीनों के जरिए गिना जा सकता है, और भविष्य में गिनती आसान बनाने के लिए वीवीपैट इकाइयों में लोड किये गये चुनाव चिन्हों को बारकोड से लैस किया जा सकता है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि इस तरह के तकनीकी उन्नयन से ही चुनाव प्रक्रिया संदेह-मुक्त बन सकती है। गौर करने लायक ज्यादा बड़ी बात यह है कि संभावित हेराफेरी की आशंकाएं व संदेह इशारा करते हैं कि भारत निर्वाचन आयोग में अविश्वास का यह स्तर पहले कभी नहीं देखा गया। मतदान और मतगणना की प्रणाली में मतदाता का विश्वास एक चीज है, मगर चुनाव निगरानी-संस्था को निष्पक्ष संस्था के रूप में देखा जाना बिल्कुल दूसरी।