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अंतरिक्ष एक समय आखिरी मोर्चा हुआ करता था। लेकिन वहां खोज की बढ़ती गतिविधियों ने इस स्थिति को बदल दिया है। अंतरिक्ष के वित्तीय, सामाजिक-आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थों ने अंतरिक्ष से जुड़ी रोमांटिक धारणाओं की जगह ले ली है। अंतरिक्ष से जुड़ी प्रौद्योगिकियां और अंतरिक्ष के उड़ान महंगे एवं जोखिम भरे प्रयास होते हैं जिनमें संलग्न होने के लिए दशकों से सिर्फ राष्ट्रीय एजेंसियां ही उपयुक्त थीं। यह अब सच नहीं रहा क्योंकि निजी क्षेत्र की कंपनियों से बाजार के अवसरों की पहचान तथा तेजी से नवाचार करके पूरक, संवर्द्धन और/या नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की अपेक्षा की जा रही है। भारत ने 2020 में राज्य की अगुवाई में होने वाले वाले सुधारों के साथ इस रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू किया। इन सुधारों के जरिए उसने अपने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया और फिर ‘भू-स्थानिक दिशानिर्देश’ जारी किया। बाद में, ‘भारतीय अंतरिक्ष नीति’ जारी की गई, जिससे भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) का निर्माण हुआ और दूरसंचार अधिनियम 2023 पारित किया गया, जो अन्य बातों के अलावा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 से आगे बढ़कर उपग्रह ब्रॉडबैंड सेवाओं से जुड़े प्रावधान करता है। बीते 21 फरवरी को, सरकार ने “उपग्रहों, ग्राउंड सेगमेंट और उपयोगकर्ता सेगमेंट के लिए घटकों और प्रणालियों / उप-प्रणालियों के निर्माण” में शत-प्रतिशत - उपग्रह-निर्माण, संचालन एवं डेटा उत्पाद में 74 फीसदी तक; और प्रक्षेपण वाहनों, अंतरिक्ष पोर्ट और उनके संबंधित प्रणालियों में 49 फीसदी तक - प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए दरवाजा खोल दिया। इस प्रकार, लीक से हटकर और स्वचालित रास्तों के जरिए पर्याप्त एफडीआई की इजाजत देकर, सरकार ने अंतरिक्ष नीति में जिक्र की गई महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप राष्ट्रीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी अंतरिक्ष उड़ान ऑपरेटरों, प्रौद्योगिकी-विकसित करने वालों और एप्लिकेशन डिजाइनरों के योगदान को बढ़ावा देने का अगला तार्किक कदम उठाया है।
यह फैसला भारत को एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में चीन की ज्यादा उन्नत स्थिति के बराबर पहुंचने के वास्ते अपने बेहतर विदेशी ताल्लुकातों का फायदा उठाने में समर्थ बनाता है। चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम को जहां निजी क्षेत्र की भागीदारी से फायदा मिलता है, वहीं उसकी विदेशी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता, अन्य बातों के अलावा, उसकी आक्रामक विदेशी नीतियों और शी जिनपिंग प्रशासन की सेना को आधुनिक बनाने की योजना एवं सैन्य इस्तेमाल के लिए असैनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने से बाधित होती है। यह एक अलग बात है कि अमेरिका सहित कई अन्य देशों ने ऐसी ही नीतियां हैं। इन-स्पेस के अध्यक्ष पवन के. गोयनका के अनुसार, 2021-23 में अंतरिक्ष क्षेत्र द्वारा दुनिया भर से जुटाए गए 37.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एक “महत्वपूर्ण” हिस्सा अंतरिक्ष स्टार्ट-अप को चला गया। इस विस्तारित पृष्ठभूमि में, स्टार्ट-अपों की प्रतिभा और पूंजी तक पहुंच में सुधार करके नए निवेश भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकते हैं; धारा के अनुकूल (डाउनस्ट्रीम) के मुकाबले ज्यादातर धारा के प्रतिकूल (अपस्ट्रीम) रहने वाले अवसरों के बीच बेहतर संतुलन कायम कर सकते हैं; स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं; और निवेशकों के भरोसे को बेहतर कर सकते हैं। अंत में, बदलाव की इन हवाओं को बरकरार रखने के लिए, सरकार को नियामक माहौल को स्पष्ट रखना होगा, लालफीताशाही को कम करना होगा, सार्वजनिक समर्थन बढ़ाना होगा और भारतीय कंपनियों की विदेशी बाजारों तक पहुंच को आसान बनाना होगा।