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संपादकीय

ऊर्जा सुरक्षित दक्षिण एशिया का लक्ष्य

27.04.22 453 Source: The Hindu
ऊर्जा सुरक्षित दक्षिण एशिया का लक्ष्य

सार्वभौमिक कवरेज क्षेत्र के आर्थिक विकास को उत्प्रेरित कर सकता है और साथ ही ऊर्जा व्यापार को शांति निर्माण (peace building) से जोड़ा जाना चाहिए।

दक्षिण एशिया में विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या विश्व के 5% भूभाग पर निवास करती है। दक्षिण एशिया में बिजली उत्पादन 1990 में 340 टेरावाट घंटे (TWh) से बढ़कर 2015 में 1,500 TWhहो गया है। बांग्लादेश ने हाल ही में 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है जबकि भूटान, मालदीव और श्रीलंका ने 2019 में ही इसे प्राप्त कर लिया था। भारत और अफगानिस्तान के लिए, यह आंकड़े क्रमश: 94.4% और 97.7% हैं, जबकि पाकिस्तान के लिए यह 73.91% है। दक्षिण एशिया में भूटान की बिजली की कीमत सबसे सस्ती है (यूएस $0.036 प्रति किलोवाट घंटा) जबकि भारत में सबसे अधिक (यूएस $0.08 प्रति किलोवाट घंटा) है। बांग्लादेश सरकार ने बिजली उत्पादन में काफी सुधार किया है, जिसके परिणामस्वरूप बिजली की मांग 2009 में 4,942 kWh से 2022 तक 25,514 MW हो गई है। भारत कुल खपत का 40% प्रदान करने के लिए अक्षय ऊर्जा में परिवर्तन करने की कोशिश कर रहा है, जबकि पाकिस्तान अभी भी बिजली की कमी को कम करने के लिए संघर्ष कर रहा है जो उसकी अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।

दक्षिण एशियाई देशों की बिजली नीतियों का उद्देश्य हर घर को बिजली उपलब्ध कराना है। इसका उद्देश्य विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति कुशल तरीके से, उचित दरों पर और उपभोक्ता हितों की रक्षा करना है। इन मुद्दों में उत्पादन, पारेषण, वितरण, ग्रामीण विद्युतीकरण, अनुसंधान और विकास, पर्यावरण संबंधी मुद्दे, ऊर्जा संरक्षण और मानव संसाधन प्रशिक्षण शामिल हैं।

इन देशों के बीच भौगोलिक अंतर संसाधनों के आधार पर एक अलग दृष्टिकोण की मांग करते हैं। जबकि भारत कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है, जो इसके बिजली उत्पादन का लगभग 55% है और अगर नेपाल की बात करें तो इसे 99.9% ऊर्जा जल विद्युत से प्राप्त होती है।बांग्लादेश का 75% बिजली उत्पादन प्राकृतिक गैस पर निर्भर करता हैऔर श्रीलंका तेल पर निर्भर है, जो अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6% तेल आयात करने पर खर्च करता है।

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