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मुद्रास्फीति में भले ही थोड़ी नरमी आई हो, लेकिन इसके खतरों पर निरंतर निगरानी की जरूरत।
इस सप्ताह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मुद्रास्फीति के खिलाफ भारत की जंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने संकेत दिया कि यह अब ‘खतरे के निशान वाली’ प्राथमिकता नहीं है क्योंकि रोजगार सृजित करने, विकास की रफ्तार को बरकरार रखने और धन का समान वितरण सुनिश्चित करने जैसी बड़ी जिम्मेदारियां सामने हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति को कुछ हद तक ‘काबू करने लायक’ स्तर पर लाकर इससे निपटने की अपनी क्षमता दिखाई है।
वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि उपभोक्ता मुद्रास्फीति के इस अप्रैल में पिछले आठ साल में सबसे अधिक 7.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच जाने के बाद से केंद्रीय बैंक और सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों और जिन्सों की कीमतों में हाल ही में आई गिरावट की वजह से मुद्रास्फीति के दबाव को ‘सीमित’ रखा जा सकेगा। जुलाई माह में 6.71 फीसदी की खुदरा मुद्रास्फीति भले ही एक राहत की बात हो, फिर भी यह असहज रूप से छह फीसदी की आधिकारिक सहिष्णुता सीमा से ऊपर बनी हुई है।
देश के ग्रामीण इलाकों में महंगाई दर बहुत तेज रही है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले चार महीनों में औसतन 7.6 फीसदी और वर्ष 2022 के दौरान सात फीसदी से अधिक रही है। जबकि इन्हीं दो निर्धारित समय-सीमा में कुल औसत उपभोक्ता मुद्रास्फीति दर क्रमशः 7.14 फीसदी और 6.79 फीसदी रही। जहां मुख्य मासिक आंकड़े भावना को प्रभावित करते हैं, वहीं उच्च मुद्रास्फीति का एक लंबा दौर परिवारों की क्षमता और खर्च करने की प्रवृत्ति के लिहाज से बेहद नुकसानदेह है। इससे मांग और उद्योग जगत के नए निवेश को उत्प्रेरित कर सकने वाली विकास की रफ्तार को झटका लग सकता है। अब तक का असमान मानसून ग्रामीण इलाकों में मांग को और कमजोर कर सकता है, क्योंकि धान और दलहन की कम बुआई से उपजी चिंता के कारण हाल के सप्ताहों में इन अनाजों की कीमतों में तेजी दिखाई पड़ी है।
भारतीय रिज़र्व बैंक का मानना है कि भारत में मुद्रास्फीति अपने चरम को छू चुकी है, लेकिन डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा जिन्सों की कम लागत के बावजूद कीमतों में नरमी के ‘स्थायी’ बने रहने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। उनके हिसाब से इसके ऊपर जाने का जोखिम बरकरार है। अब जबकि अगस्त माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) का आंकड़ा अगले सप्ताह आने वाला है, कुछ लोगों का मानना है कि यह मुद्रास्फीति को फिर से सात फीसदी के करीब ले जा सकता है।
ऐसा आंशिक रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से होगा। खाद्य पदार्थों की कीमतों की सीपीआई में 45 फीसदी की हिस्सेदारी होती है और यह जुलाई माह में पांच महीने के निचले स्तर पर लुढ़क गई थी। खाद्य पदार्थों की कीमतों में फिर से उछाल आने की आशंका है। भले ही हम सब यह उम्मीद करें कि महंगाई का बुरा दौर बीत चुका है, लेकिन अभी चौकसी में ढिलाई बरतना जल्दबाजी होगी। गुरुवार को, सुश्री सीतारमण ने कहा कि अकेले ब्याज दरों में बढ़ोतरी जैसे नीतिगत मौद्रिक उपायों के जरिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। विकास की रफ्तार को बाधारहित बनाने की जरूरत के मद्देनजर उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक को दुनिया के विकसित देशों के अपने समकक्षों के साथ ‘तालमेल’ नहीं बिठा पाने के लिए उलाहना दिया। मुद्रास्फ Download pdf to Read More