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संपादकीय

भारत की शिक्षा प्रणाली में खामियां

19.01.24 609 Source: 19 January, The Hindu
भारत की शिक्षा प्रणाली में खामियां

महामारी भारत के सबसे छोटे नागरिकों यानी बच्चों पर भारी गुजरी थी, लेकिन इसके असर के सही मायने अब सामने आ रहे हैं। शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट ‘असर 2023 : बीयॉन्ड बेसिक्स’ नाम से बुधवार को जारी की गयी। यह एक सर्वेक्षण है जिसे सिविल सोसाइटी संगठन ‘प्रथम’ ने 14 से 18 साल के ग्रामीण बच्चों के बीच किया है। इस रिपोर्ट में पाया गया कि इन बच्चों में आधे से ज्यादा ऐसे हैं जिन्हें उस बुनियादी गणित में मुश्किल पेश आयी, जिसमें उन्हें कक्षा 3 या 4 में माहिर हो जाना चाहिए था। चार सालों में पहली बार घरों में जाकर सर्वेक्षण हो पाया। इसे 26 राज्यों के 28 जिलों में किया गया और 34,745 छात्रों की बुनियादी स्तर की पठन व अंकगणितीय क्षमताओं का आकलन किया गया। इसमें कई अन्य निष्कर्ष भी सामने आये हैं। इस आयु वर्ग के 25 फीसदी से ज्यादा बच्चे अपनी मातृभाषा में कक्षा 2 के स्तर के पाठ नहीं पढ़ पाते; हालांकि, लड़के अंकगणित और अंग्रेजी पढ़ पाने के मामले में लड़कियों से बेहतर हैं। कुल मिलाकर, 14-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में से 86.8 किसी न किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं, लेकिन उनके बड़े होने के साथ खामियां उभरने लगती हैं – 14 साल के 3.9 फीसदी बच्चे स्कूलों में नामांकित नहीं हैं, लेकिन 18 साल वालों के मामले में यह आंकड़ा 32.6 फीसदी तक पहुंच जाता है। इसके अलावा, कक्षा 11 और उसके ऊपर, ज्यादा छात्र मानविकी को ही चुनते हैं; लेकिन लड़कियों के विज्ञान के वर्ग में नामांकित (28.1%) होने की संभावना लड़कों की तुलना (36.3%) में और भी कम होती है, और व्यावसायिक प्रशिक्षण और अन्य संबंधित पाठ्यक्रमों को तो महज 5.6 फीसदी लड़कियों ने चुना है।


राष्ट्रीय स्तर पर ‘प्राइवेट ट्यूशन’ का सहारा लेने वाले बच्चों का अनुपात 2018 के 25 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गया है। सर्वेक्षण में शामिल नौजवानों में से लगभग 90 फीसदी के पास स्मार्टफोन है और वे उसे इस्तेमाल करना जानते हैं, हालांकि बहुतों को ‘ऑनलाइन सेफ्टी सेटिंग्स’ के बारे में जानकारी नहीं है। इन रुझानों, खासकर पढ़ने और सरल अंकगणित हल करने में फिसड्डीपन, से यह अंदाजा मिलता है कि शिक्षा प्रणाली में क्या समस्या है और किन सुधारात्मक उपायों की जरूरत है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि “2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता और अंकगणितीय क्षमता हासिल करना” सर्वोच्च प्राथमिकता है। रिपोर्ट कहती है कि सभी राज्यों ने ‘निपुण भारत मिशन’ के तहत बुनियादी साक्षरता और अंकगणितीय क्षमता की दिशा में काफी कोशिश की है, लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि भारत जैसे विविधतापूर्ण और विशाल देश में अभी बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है। बढ़ता नामांकन अच्छी चीज है, लेकिन अनिवार्य स्कूली शिक्षा (कक्षा 8) पूरी करने के बाद जो चीज छात्रों का इंतजार कर रही होती है, वह उतनी सुहावनी नहीं है – कई बार तो इसकी वजह बस यह होती है कि वे उच्च माध्यमिक स्तर के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी पाठ्यक्रम से पार पाने में सक्षम नहीं होते। शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 ने शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित की हो सकती है, लेकिन कानून की सच्ची भावना के अनुरूप यह हर बच्चे को छू पाए उससे पहले बहुत से गैप्स भरने होंगे।

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