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अडानी समूह की कंपनियों पर शेयरों (स्टॉक) की कीमतों में हेराफेरी सहित एक अमेरिका-स्थित लघु विक्रेता (शोर्ट सेलर) द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर दायर विभिन्न याचिकाओं के एक समूह पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने गेंद को सीधे बाजार नियामक के पाले में फेंक दिया है। अदालत ने व्यापक जनहित की रक्षा से संबंधित याचिकाकर्ताओं की अपील को अपनी दूरंदेशी की जगह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की “नियामक नीतियों पर उसके खुद के ज्ञान” के अधीन करने का विकल्प चुना है। हैरतअंगेज तरीके से, पीठ ने न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता और संबंधित पक्ष के लेन-देन से जुड़े संभावित उल्लंघनों के निर्धारण के उन बुनियादी सवालों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है जिन्हें अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने मई 2023 की अपनी रिपोर्ट में ‘सेबी और अदालत के बीच के मामले’ के रूप में छोड़ने का विकल्प चुना था। इसके बजाय पीठ ने उन गुजारिशों को नजरअंदाज कर दिया है जिसमें अदालत से सेबी को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक विनियम और लिस्टिंग के दायित्वों और प्रकटीकरण से जुडी शर्तों में अपने संशोधनों को रद्द करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था। ये संशोधन इस नियामक संस्था की विफलता से संबंधित याचिकाकर्ताओं की दलीलों के केंद्र में थे और याचिकाकर्ताओं की गुजारिशों को पूरी तरह से इस आधार पर खारिज कर दिया कि न तो “किसी किस्म की अवैधता” थी, न ही मानदंड “मनमौजी, मनमाने या संविधान का उल्लंघन करने वाले” थे।
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