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भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) का भाजपा व कांग्रेस को आम चुनाव के प्रचार में विभाजनकारी मुद्दे उठाने से बचने के लिए कहना देर आये दुरुस्त आये का मामला है। हाल के वर्षों में, भारतीय निर्वाचन आयोग ने चुनावों के निगरानीकर्ता के रूप में असरदार, निष्पक्ष और मुस्तैद होने में अपनी अक्षमता से भारतीय मतदाताओं को निराश किया है। कुछ हद तक इसकी वजह भारतीय निर्वाचन आयोग सदस्यों की नियुक्ति प्रणाली है, जो कार्यपालिका का पूरी तरह एकपक्षीय निर्णय होता है। भारतीय निर्वाचन आयोग ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को अब पत्र लिखा है कि वह पार्टी के “स्टार प्रचारकों” को ऐसे बयानों से परहेज करने के लिए कहें जो “समाज को बांट सकते हैं”। राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण (जिसमें मोदी ने मुसलमानों का जिक्र “घुसपैठियों”और “ज्यादा बच्चे वाले लोगों” के रूप में किया था) के खिलाफ एक शिकायत पर नड्डा को नोटिस जारी हुआ था, जिस पर 13 मई को उनके जवाब के बाद भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह पत्र लिखा है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा गया पत्र उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहता है कि पार्टी के स्टार प्रचारक ऐसे बयानों से बचें जो विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकते हैं। पार्टियों को भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह फटकार कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश व तमलुक से भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय की भर्त्सना करने के एक दिन बाद लगायी है। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी पर उनकी टिप्पणियों के लिए उन्हें 24 घंटे के लिए प्रचार करने से रोका गया।
इससे पहले, भारतीय निर्वाचन आयोग ने वाईएसआरसीपी प्रमुख वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी, बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव, तेलंगाना की मंत्री कोंडा सुरेखा, भाजपा नेता शोभा करंदलाजे व दिलीप घोष और कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत व रणदीप सुरजेवाला के खिलाफ कार्रवाई की थी। आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के कथित उल्लंघन के लिए, पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा के खिलाफ शिकायतें अभी लंबित हैं। कुल मिलाकर, ये कदम निष्पक्षता का भान करा सकते हैं, लेकिन इतना काफी नहीं है। विभिन्न सामाजिक समूहों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करने वाली नीतियों पर जायज बहस और सामाजिक ध्रुवीकरण के लिए समूह विशेष के प्रति भय फैलाने को भारतीय निर्वाचन आयोग गलत ढंग से एक बराबर मान रही है। एमसीसी उन राजनीतिक बहसों व असहमतियों को दबाने की कुटिल चाल नहीं बन सकती जो चुनाव प्रचार का प्राण हैं और जिन्हें प्राण होना भी चाहिए। सत्ता का दुरुपयोग और वैमनस्य पैदा करना अलग श्रेणी में आता है। चुनावों की वैधता के लिए ईसीआई की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता केंद्रीय महत्व रखते हैं। उसकी स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना भारतीय लोकतंत्र के सभी हितधारकों, खासकर राजनीतिक दलों और न्यायपालिका, के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। भारतीय निर्वाचन आयोग इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे खुद के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
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