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संपादकीय

मानदंड का निर्धारणः भारत निर्वाचन आयोग

23.05.24 188 Source: The Hindu (23 May, 2024)
मानदंड का निर्धारणः भारत निर्वाचन आयोग

भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) का भाजपा व कांग्रेस को आम चुनाव के प्रचार में विभाजनकारी मुद्दे उठाने से बचने के लिए कहना देर आये दुरुस्त आये का मामला है। हाल के वर्षों में, भारतीय निर्वाचन आयोग ने चुनावों के निगरानीकर्ता के रूप में असरदार, निष्पक्ष और मुस्तैद होने में अपनी अक्षमता से भारतीय मतदाताओं को निराश किया है। कुछ हद तक इसकी वजह भारतीय निर्वाचन आयोग सदस्यों की नियुक्ति प्रणाली है, जो कार्यपालिका का पूरी तरह एकपक्षीय निर्णय होता है। भारतीय निर्वाचन आयोग ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को अब पत्र लिखा है कि वह पार्टी के “स्टार प्रचारकों” को ऐसे बयानों से परहेज करने के लिए कहें जो “समाज को बांट सकते हैं”। राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण (जिसमें मोदी ने मुसलमानों का जिक्र “घुसपैठियों”और “ज्यादा बच्चे वाले लोगों” के रूप में किया था) के खिलाफ एक शिकायत पर नड्डा को नोटिस जारी हुआ था, जिस पर 13 मई को उनके जवाब के बाद भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह पत्र लिखा है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा गया पत्र उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहता है कि पार्टी के स्टार प्रचारक ऐसे बयानों से बचें जो विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकते हैं। पार्टियों को भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह फटकार कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश व तमलुक से भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय की भर्त्सना करने के एक दिन बाद लगायी है। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी पर उनकी टिप्पणियों के लिए उन्हें 24 घंटे के लिए प्रचार करने से रोका गया।

इससे पहले, भारतीय निर्वाचन आयोग ने वाईएसआरसीपी प्रमुख वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी, बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव, तेलंगाना की मंत्री कोंडा सुरेखा, भाजपा नेता शोभा करंदलाजे व दिलीप घोष और कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत व रणदीप सुरजेवाला के खिलाफ कार्रवाई की थी। आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के कथित उल्लंघन के लिए, पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा के खिलाफ शिकायतें अभी लंबित हैं। कुल मिलाकर, ये कदम निष्पक्षता का भान करा सकते हैं, लेकिन इतना काफी नहीं है। विभिन्न सामाजिक समूहों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करने वाली नीतियों पर जायज बहस और सामाजिक ध्रुवीकरण के लिए समूह विशेष के प्रति भय फैलाने को भारतीय निर्वाचन आयोग गलत ढंग से एक बराबर मान रही है। एमसीसी उन राजनीतिक बहसों व असहमतियों को दबाने की कुटिल चाल नहीं बन सकती जो चुनाव प्रचार का प्राण हैं और जिन्हें प्राण होना भी चाहिए। सत्ता का दुरुपयोग और वैमनस्य पैदा करना अलग श्रेणी में आता है। चुनावों की वैधता के लिए ईसीआई की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता केंद्रीय महत्व रखते हैं। उसकी स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना भारतीय लोकतंत्र के सभी हितधारकों, खासकर राजनीतिक दलों और न्यायपालिका, के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। भारतीय निर्वाचन आयोग इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे खुद के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

आदर्श आचार संहिता क्या है और इसके उद्देश्य क्या हैं?

  • आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने के लिए मानदंडों और सिद्धांतों का एक समूह है, जो राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति से उक्त संहिता में सन्निहित सिद्धांतों का पालन करने के लिए विकसित किया गया है और उन्हें सम्मान और पालन करने के लिए भी बाध्य करता है। यह अपने अक्षरशः और आत्मा में है।
  • चुनाव आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा आदर्श आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करता है ।
  • एमसीसी यह भी सुनिश्चित करती है कि चुनावी उद्देश्यों के लिए आधिकारिक मशीनरी का दुरुपयोग न हो। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि चुनावी अपराध, कदाचार और भ्रष्ट आचरण को हर तरह से रोका जाए।
  • आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तारीख से लागू होती है और चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है।
  • लोकसभा के आम चुनावों के दौरान , संहिता पूरे देश में लागू होती है। राज्य की विधान सभा के आम चुनावों के दौरान , संहिता पूरे राज्य में लागू होती है।
  • उप-चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता केवल संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में ही लागू होगी।


आदर्श आचार संहिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

  • आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) की जड़ें भारत के चुनावी इतिहास में हैं। इसकी उत्पत्ति केरल राज्य में हुई और समय के साथ, यह आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में विकसित हो गई है।
  • एमसीसी की उत्पत्ति केरल में 1960 के विधानसभा चुनावों से मानी जाती है , जहां राज्य प्रशासन द्वारा राजनीतिक नेताओं के लिए एक 'आचार संहिता' तैयार की गई थी।
  • इसके बाद, 1962 के लोकसभा चुनावों में , भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को कोड प्रसारित किया, जिसका आम तौर पर पालन किया गया।
  • हालाँकि, 1962 से 1991 तक बाहुबल और धन का उपयोग करके भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के मुद्दे को संबोधित करने के लिए , ईसीआई ने कोड को परिष्कृत किया, जिसमें 'सत्ता में पार्टी' को विनियमित करने और चुनावों के दौरान अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकने के लिए एक अनुभाग जोड़ा गया। 
  • कोड का नाम बदलकर एमसीसी कर दिया गया और इसे और अधिक सख्त बना दिया गया, लेकिन इसे कानून में शामिल करने की मांग के बावजूद, ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया गया।
  • 1991 के बाद, ECI ने नए तरीकों का उपयोग करके MCC को लागू किया, और उल्लंघन के मामलों में, मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव स्थगित करने के लिए  अनुच्छेद 324 के तहत संवैधानिक शक्ति का प्रयोग किया ।
  • 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को एमसीसी में चुनाव घोषणापत्र पर दिशानिर्देश शामिल करने का निर्देश दिया, जिसे बाद में 2014 के आम चुनावों के लिए कोड में शामिल किया गया।
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