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यह लगातार दूसरा महीना है, जब भारत के माल निर्यात में पिछले महीने बढ़ोतरी हुई। हालांकि, यह बढ़ोतरी दिसंबर में हुई एक फीसदी की वृद्धि से मामूली ही ज्यादा होकर 3.1 फीसदी की रही। यह 2023-24 में बाहर भेजी जाने वाली खेप (आउटबाउंड शिपमेंट) में बढ़ोतरी का सिर्फ चौथा महीना है और इस साल का व्यापारिक निर्यात का कुल मूल्य 4.9 फीसदी कम होकर लगभग 354 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। जनवरी महीने का 36.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात जहां इस साल के मासिक औसत से ऊपर है, वहीं यह दिसंबर महीने के मुकाबले चार फीसदी कम है। साफ तौर पर, क्रिसमस के बाद मांग में इस तरह की क्रमिक गिरावट असामान्य नहीं है और इस गिरावट के लिए वैश्विक व्यापार गलियारों में पैदा हुए उत्पात - हौथी विद्रोहियों ने लाल सागर के आसपास शिपिंग लाइनों के संचालन में व्यवधान पैदा किया, जिससे यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों में माल का प्रवाह प्रभावित हुआ - को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में, जनवरी महीने के व्यापार आंकड़े बताते हैं कि अब तक इस व्यवधान का असर बहुत ज्यादा चिंताजनक नहीं है, हालांकि कुछ प्रमुख क्षेत्रों में कुछ तकलीफ जरूर महसूस हो रही है। जनवरी में इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात की वृद्धि दर घटकर चार फीसदी से थोड़ा ज्यादा रह गई, जबकि श्रम प्रधान रत्न एवं आभूषणों के क्षेत्र में 1.3 फीसदी की गिरावट के साथ हल्का संकुचन हुआ।
लाल सागर के षडयंत्रों के अभी तक व्यापक रूप से स्पष्ट असर के अभाव के अलावा, माल व्यापार घाटे में तेज गिरावट उल्लेखनीय है क्योंकि यह नौ महीने के निचले स्तर 17.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया – वह भी लगभग 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने के सिर्फ तीन महीने बाद ही। दूसरा पहलू यह है कि हाल ही में आयात के खर्चे में कमी परियोजना सामानों एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी वस्तुओं के आयात में आई कुछ कमी की वजह से हुई है, जोकि अर्थव्यवस्था में निवेश और उपभोग की रफ्तार के कमजोर होने का संकेत देती है। सरकार ने यह विश्वास जताया है कि वैश्विक स्तर पर कई किस्म की प्रतिकूलताओं के बावजूद, भारत निर्यात के मामले में इस साल भी 2022-23 के 776 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अपने रिकॉर्ड प्रदर्शन की बराबरी करेगा। हालांकि, माल के मोर्चे पर, खासकर जिन्सों (कमोडिटी) की कीमतों में गिरावट के मद्देनजर पिछले साल की 451 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। सेवाओं का निर्यात, इस साल 6.3 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है और अगर वे इस रफ्तार को बरकरार रखते हैं, तो इस साल के लिए कुल निर्यात के आंकड़े को 760 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंचने में मदद मिल सकती है। आने वाले साल का अनुमान अनिश्चितता और जोखिमों के भंवर में फंसा हुआ है। भले ही यूनाइटेड किंगडम ने जुलाई 2020 के बाद से खुदरा बिक्री में सबसे तेज क्रमिक उछाल दर्ज किया है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्थाओं से मांग के रुझान को लेकर कमजोर या मिश्रित संकेत मिल रहे हैं। ब्याज दरों में कटौती फिलहाल अस्पष्ट बनी हुई है। अंत में लाल सागर के रास्ते वाणिज्यिक यातायात की सुरक्षा के लिए अमेरिका की अगुवाई वाले ‘ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन’ के बावजूद, जहाज चालकों ने इस बात की चेतावनी दी है कि हौथी विद्रोहियों का पहलू कई और महीनों तक लंबे मार्गों के इस्तेमाल के लिए मजबूर कर सकता है। आपूर्ति में लगने वाले लंबे समय के अलावा, लदाई की दरों एवं निर्यात की परिचालन लागत में बढ़ोतरी कीमतों में कुछ बढ़ोतरी के लिए मजबूर कर सकती है जो कुछ बाजारों में पहले से ही चल रही कमजोर मांग पर असर डाल सकती है और संभावित खरीदारों को भारतीय माल की जगह ज्यादा प्रतिस्पर्धी विकल्पों की तलाश करने को मजबूर कर सकती है।