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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का लगातार छठा बजट भाषण आम चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 2014 के बाद से उनके नेतृत्व वाली दो सरकारों द्वारा हासिल की गई आर्थिक उपलब्धियों पर खुद की पीठ थपथपाने देने वाला रिपोर्ट कार्ड था। अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन से संबंधित वित्त मंत्रालय की समीक्षा को प्रतिध्वनित करते तथा यह बतलाते हुए कि जब श्री मोदी ने पदभार संभाला था तो उन्हें ‘विशाल चुनौतियां’ विरासत में मिलीं थीं, सुश्री सीतारमन ने जोर देकर कहा कि ‘संरचनात्मक सुधारों, जनोपयोगी कार्यक्रमों और रोजगार व उद्यमिता के अवसरों के सृजन’ के जरिए उन परिस्थितियों पर काबू पाया लिया गया है। उन्होंने कहा कि नए सिरे से जान फूंकी गई अर्थव्यवस्था ने यह सुनिश्चित करने में मदद की है कि विकास का फल बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचने लगा है, लोगों में आशा और उम्मीद जगी है जो पांच साल पहले दिए गए एक बड़े जनादेश में साकार हुए था। इस बात का एक स्पष्ट संकेत देते हुए कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार इस बार सत्ता में लौटने के प्रति कहीं ज्यादा आश्वस्त है, सुश्री सीतारमन ने ऐसी किसी भी घोषणा से परहेज किया जिसे मतदाताओं के एक विशेष वर्ग को लक्षित करने के रूप में देखा जा सके। इसके बजाय, जोर ‘एक समावेशी और टिकाऊ नीतिगत दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्धता पर बात करने पर था जिसकी बदौलत शासन, विकास और प्रदर्शन वाली कहीं ज्यादा व्यापक जीडीपी हासिल हुई।’ उनकी यह बेपरवाह टिप्पणी कि सरकार जुलाई में अपने पूर्ण बजट में 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक रोडमैप का विवरण देगी, एक ‘शानदार’ चुनावी जनादेश पाने की निश्चितता पर आधारित थी।
बजट के आंकड़े राजकोषीय समेकन की राह पर एक अनवरत यात्रा को दर्शाते हैं। संशोधित अनुमान (आरई) के अनुसार चालू वर्ष का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 फीसदी है, जो पिछले फरवरी के 5.9 फीसदी के बजट अनुमान (बीई) से 10 आधार अंक का सुधार है। वित्त मंत्री ने इस उपलब्धि को आरई में प्रभावी पूंजीगत व्यय में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती करके हासिल किया है, बावजूद इसके कि नाममात्र की वृद्धि के अनुमान में नरमी आई है। वर्ष 2024-25 के लिए, उन्होंने एक तेज समेकन का अनुमान लगाया है और बीई के आधार पर राजस्व प्राप्तियों में 14 फीसदी की बढ़ोतरी के मद्देनजर घाटे को 5.1 फीसदी पर आंका है। इससे अनुमानित पूंजीगत व्यय में 11 फीसदी की वृद्धि को 11.11 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है। सुश्री सीतारमन, जिन्होंने पिछले चार वर्षों में पूंजीगत व्यय परिव्यय में तीन गुना वृद्धि पर जोर दिया था, जिसका ‘विकास और रोजगार सृजन पर भारी गुणात्मक प्रभाव’ पड़ा था, ने हालांकि इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि अगले वर्ष पूंजीगत व्यय में बजटीय वृद्धि पिछले वित्तीय वर्ष के वास्तविक आंकड़ों की तुलना में आरई में 28 फीसदी की बढ़ोतरी से काफी कम है। एक ऐसे समय में जब निजी उपभोग व्यय का आधिकारिक अनुमान महामारी के बाद सबसे निचले स्तर की वृद्धि को दर्शा रहा है, राजकोषीय विवेक पर बजट का दबाव आर्थिक गति को कमजोर करने का जोखिम रखता है। सबसे बड़ी चुनौती लगातार बढ़ती असमानता की चिंताजनक आशंका है।