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प्लास्टिक के इस्तेमाल को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कम से कम 175 सदस्य देशों की एक महत्वाकांक्षी पहल, वैश्विक प्लास्टिक संधि की चौथे दौर की वार्ता हाल ही में संपन्न हुई। मकसद 2024 के अंत तक ऐसे समय-सीमा के साथ एक कानूनी दस्तावेज को अंतिम रूप देना है, जब सभी देशों को प्लास्टिक उत्पादन पर अंकुश लगाने, बर्बादी पैदा करने वाले इसके इस्तेमाल को खत्म करने, इसके उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ रसायनों पर प्रतिबंध लगाने और पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) के लिए लक्ष्य निर्धारित करने के लिए सहमत होना होगा। बदकिस्मती से, कोई समझौता नजर नहीं आ रहा है। इस साल नवंबर में दक्षिण कोरिया के बुसान में वार्ता का एक और दौर निर्धारित है। प्राथमिक बाधाएं आर्थिक हैं। सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, भारत और ईरान जैसे तेल उत्पादक एवं शोधक (रिफाइनिंग) देश प्लास्टिक उत्पादन को खत्म करने के लिए किसी सख्त समय सीमा के प्रति अनिच्छुक हैं। कई यूरोपीय देशों द्वारा समर्थित अफ्रीकी देशों का गठबंधन कटौती की समय-सीमा को प्रभावी करने के लिए 2040 के आसपास के किसी साल के पक्ष में है। इस बात को लेकर भी असहमति है कि संधि में विवादास्पद तत्वों पर फैसला मतदान से हो या सर्वसम्मत निर्णय से - जिसका सीधा अर्थ यह है कि हर देश के पास वीटो हो। बाध्यकारी लक्ष्यों के प्रति असहज होने के अलावा, भारत की राय यह है कि प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी एक उपकरण को “... क्षमता निर्माण एवं तकनीकी सहायता, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वित्तीय सहायता के लिए लागत संबंधी निहितार्थों तथा निर्दिष्ट व्यवस्था सहित विभिन्न विकल्पों की उपलब्धता, सुलभता व किफायती होने” पर भी ध्यान देना चाहिए। यह भाषा - और भारत इसका एकमात्र प्रस्तावक नहीं है - जलवायु वार्ता में निहित ‘साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारी’ के सिद्धांत की याद दिलाती है। इसके तहत, सभी देशों के सामने एक साझा लक्ष्य होना चाहिए लेकिन जो ज्यादा विशेषाधिकार प्राप्त देश हैं उन्हें दूसरे देशों की सहायता करनी चाहिए और खुद के लिए कड़े लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।
जिस साल प्लास्टिक संधि पर विचार किया गया था, 2022 में, भारत ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम (2021) को लागू किया। इस नियम के तहत “एकल-उपयोग” वाले प्लास्टिक की 19 श्रेणियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि, इसमें प्लास्टिक की बोतलें - यहां तक कि 200 मिलीलीटर से कम की बोतलें - और बहु-स्तरीय पैकेजिंग बक्से (जैसे दूध के डिब्बे) शामिल नहीं हैं। इसके अलावा, एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर भी प्रतिबंध को राष्ट्रीय स्तर पर समान रूप से लागू नहीं किया गया है और कई दुकान इन वस्तुओं की खुदरा बिक्री को जारी रखे हुए हैं। गैर-लाभकारी ईए अर्थ एक्शन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्लास्टिक प्रदूषण का वैश्विक वितरण असमान है और 60 फीसदी प्लास्टिक कचरे के लिए ब्राजील, चीन, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका जिम्मेदार हैं। जिस तरह जीवाश्म ईंधन से दूर हटने की अपनी चुनौतियां हैं, उसी तरह प्लास्टिक प्रदूषण को सिर्फ संधियों पर हस्ताक्षर करके खत्म नहीं किया जा सकता है। यथार्थवादी लक्ष्य तय करने से पहले वैकल्पिक उत्पादों में बहुत ज्यादा निवेश करने और उन्हें किफायती बनाने की जरूरत है।