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संपादकीय

प्लास्टिक की झमेला: भारत की कचरे की समस्या

29.07.24 290 Source: The Hindu (July 29, 2024)
प्लास्टिक की झमेला: भारत की कचरे की समस्या

अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत भी प्लास्टिक कचरे की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना 40 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। बदकिस्मती से, इस कचरे का सिर्फ एक चौथाई हिस्से का ही पुनर्चक्रण (रीसाइकिल) या शोधन (ट्रीटमेंट) किया जाता है, बाकी कचरा भराव क्षेत्र (लैंडफिल) में यूं ही पड़ा रहता है या अनिश्चित तरीके से निपटाया जाता है। वर्ष 2016 से, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों ने यह अनिवार्य कर दिया है कि प्लास्टिक के उपयोगकर्ता अपने कचरे को इकट्ठा करने और उनका पुनर्चक्रण करने (रीसाइक्लिंग) के लिए जिम्मेदार होंगे। ये शर्तें, या विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) नियम, शुरू में स्वैच्छिक थे लेकिन अब इन्हें ऑनलाइन ईपीआर ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के जरिए लागू किया जाता है। ईपीआर प्रणाली में सामान पैक करने वालों (पैकेजर), आयातकों और प्लास्टिक पैकेजिंग के बड़े औद्योगिक उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ पेशेवर पुनर्चक्रणकर्ता (रीसाइक्लर) भी शामिल हैं, जिनका पंजीकरण सीपीसीबी में किया जाता है। पुनर्चक्रणकर्ता, जिनके पास प्लास्टिक कचरा एकत्र करने का नेटवर्क होता है, कचरे का पुनर्चक्रण करते हैं और प्रत्येक टन के पुनर्चक्रण के लिए मान्य प्रमाणपत्र हासिल करते हैं। इन प्रमाणपत्रों को एक समर्पित सीपीसीबी पोर्टल पर अपलोड किया जा सकता है और इन्हें उन प्लास्टिक पैकेजिंग कंपनियों द्वारा खरीदा जा सकता है जो अपने सालाना पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) लक्ष्य से पीछे रह जाते हैं। वर्ष 2022-23 में, सीपीसीबी ने यह अनुमान लगाया था कि लगभग 3.7 मिलियन टन पुनर्चक्रित प्लास्टिक के लिए प्रमाणपत्र जारी किए गए थे। हालांकि, यह पाया गया कि इनमें से सभी प्रमाणपत्र वैध नहीं थे - लगभग 6,00,000 फर्जी प्रमाणपत्र थे। इसके अलावा, हैकरों ने कथित तौर पर पिछले साल कई हजार प्रमाणपत्र चुराए और उन्हें विभिन्न कंपनियों को बेच दिया। इस संबंध में एक आपराधिक जांच जारी है और यह स्पष्ट नहीं है कि दावा किए गए 3.7 मिलियन टन कचरे में से वाकई कितने का पुनर्चक्रण किया गया।

इसके जवाब में, सीपीसीबी ने दो महत्वपूर्ण कार्रवाई की है। सबसे पहले, इसने उन लगभग 800 फर्मों का लेखा-जोखा (ऑडिट) शुरू किया जो 2,300 पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं में से लगभग एक चौथाई हिस्सा थे और जिन्होंने प्रमाणपत्रों का व्यापार किया था। दूसरा, इसने ईपीआर ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर सुरक्षा संबंधी प्रावधानों में व्यापक बदलाव किया। हालांकि, इससे 2023-24 के लिए रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया में कई महीनों की देरी हुई है। सीपीसीबी ने इन समस्याओं को बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली को लागू करने से जुड़े “शुरुआती समस्याओं” के रूप में निरूपित किया है। यों तो इस किस्म का लेखा-जोखा जरूरी है, लेकिन सालाना और लंबी जांच के चलते इस प्रणाली में भरोसा कम होने से बचने के लिए यह एक बार की कवायद होनी चाहिए। भले ही सीपीसीबी को भारी जुर्माना लगाने का अधिकार है, लेकिन यह प्रक्रिया लंबी और कानूनी चुनौतियों से भरी है। प्लास्टिक कचरे की समस्या के समाधान के लिए बाजार-संचालित दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण लेकिन सीमित प्रभाव होता है। लिहाजा प्लास्टिक उत्पादन पर अंकुश लगाने और टिकाऊ विकल्पों को बढ़ावा देने की दिशा में बड़े प्रयास किए जाने चाहिए। प्लास्टिक कचरे के मूल कारणों का पता लगाना और पुनर्चक्रण प्रणालियों की प्रभावशीलता को बढ़ाना भारत की प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के लिहाज से अहम है।

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