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इस महीने के अंत में 33 वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (आरवीपी), जो मेधावी वैज्ञानिकों को सालाना पुरस्कार देने की आजाद भारत की लंबी परंपरा के प्रति वर्तमान सरकार का नया दृष्टिकोण है, से नवाजा जाएगा। यह बदलाव शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्कारों, जो कभी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा 45 साल से कम उम्र के वैज्ञानिकों को प्रदान किए जाते थे, को खत्म करने के लिए किया गया है। इसमें एक प्रमाणपत्र, एक नकद पुरस्कार और कुछ अतिरिक्त मौद्रिक लाभ शामिल होते थे। आरवीपी ने इसकी जगह एक पदक और एक प्रमाण पत्र का प्रावधान कर दिया तथा इसका नाम बदलकर विज्ञान युवा-एसएसबी कर दिया। अन्य आरवीपी पुरस्कार - विज्ञान श्री, विज्ञान रत्न और विज्ञान टीम पुरस्कार - भी हैं। ये पुरस्कार 45 साल से ज्यादा उम्र के उन वैज्ञानिकों के लिए होंगे, जिन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दिया है और साथ ही असाधारण योगदान वाले वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों की टीमों को भी दिए जायेंगे।
सैद्धांतिक रूप से, सभी श्रेणियों के तहत पुरस्कारों की कुल संख्या 56 तक रखी गई है। हालांकि, इस साल के लिए चुने गए पुरस्कार इस सीमा से कम हैं। टीम पुरस्कार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ‘चंद्रयान-3 टीम’ को प्रदान किया गया है, जिसमें निश्चित रूप से तीन से ज्यादा सदस्य हैं। ये सब तकनीकी पहलू हैं और पुरस्कारों का पहला संस्करण होने के नाते, यह कुछ तदर्थ जैसा लग सकता है। पुरस्कार विजेताओं की सूची में खगोल भौतिकी से लेकर कृषि तक के क्षेत्रों की एक विस्तृत श्रृंखला से जुड़े वैज्ञानिक शामिल हैं और यह आरवीपी के लिहाज से अनूठा नहीं है कि इन पुरस्कार विजेताओं में से अधिकांश केंद्रीय वित्त पोषित और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, सीएसआईआर और परमाणु ऊर्जा संस्थानों जैसे भारत के सबसे विशिष्ट वैज्ञानिक एवं अनुसंधान संस्थानों से संबद्ध हैं। आरवीपी पुरस्कारों की स्थापना गृह मंत्रालय और विभिन्न विज्ञान विभागों के प्रमुखों द्वारा 2022 में यह राय दिए जाने के बाद की गई थी कि अलग-अलग वैज्ञानिक विभागों द्वारा बहुत सारे पुरस्कार दिए जा रहे हैं और उनमें कटौती करना तथा उनका ‘कद‘ बढ़ाकर राष्ट्रीय पुरस्कारों का करना जरूरी है। भले ही प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को हमेशा अन्य क्षेत्रों की तरह ही पद्म पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, लेकिन विशिष्ट रूप से वैज्ञानिकों के लिए पुरस्कारों के पीछे का मूल मकसद उन्हें अनुसंधान से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करना था, जिसके नतीजे हमेशा तुरंत मूर्त नहीं होते हैं और उसके असर का तुरंत मूल्यांकन नहीं किया जाता है। ओलंपिक पदकों की तरह ही, नोबेल पुरस्कार भी भारतीय वैज्ञानिकों से दूर है और यह कई सरकारों के लिए एक संवेदनशील विषय रहा है। राष्ट्रीय पुरस्कार नोबेल का विकल्प या उत्प्रेरक नहीं हैं। सरकार को यह नहीं समझना चाहिए कि वैज्ञानिक सिर्फ सम्मान और मान्यता पाने के लिए ही लालायित रहते हैं। भारत में बहुत से वैज्ञानिक न्यूनतम निधि व घटिया उपकरणों के सहारे और हतोत्साहित करने वाले वातावरण के बीच काम करते हैं, जिससे उन्हें अपने बंधे हुए हाथों के साथ अनुसंधान के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्रतीकात्मक कदमों के मुकाबले बजटीय आवंटन बढ़ाने और भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद बनाने से विज्ञान की कहीं ज्यादा सेवा होगी।