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संपादकीय

यूक्रेन और स्विटजरलैंड द्वारा शांति सम्मेलन का आयोजन

21.05.24 158 Source: The Hindu (20 May, 2024)
यूक्रेन और स्विटजरलैंड द्वारा शांति सम्मेलन का आयोजन

यूक्रेन पर रूस के हमले के दो साल बाद, स्विट्जरलैंड ने एक शांति सम्मेलन आयोजित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। वह अब तक पश्चिमी गठबंधन में शामिल नहीं हुए देशों को एकजुट करके इस युद्ध के बारे में वैश्विक सहमति को व्यापक बनाने का एक विशेष प्रयास कर रहा है। रूस के करीबी साझेदार, ब्रिक्स एवं एससीओ समूहों के सदस्य, दक्षिणी दुनिया देशों में एक नेता और वैश्विक नेतृत्व के आकांक्षी के रूप में, भारत निस्संदेह इस सूची में शीर्ष पर है। और पिछले कुछ महीनों में दो स्विस मंत्रियों और यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा की यात्रा के बाद इस हफ्ते स्विस विदेश सचिव एलेक्जेंडर फासेल की दिल्ली यात्रा इस बात का सबूत है कि राष्ट्र के प्रमुख/सरकार के प्रमुख स्तर की इस बैठक में भारत को निमंत्रण एक प्राथमिकता है। जिन 160 या उससे ज्यादा देशों को इस सम्मेलन के लिए निमंत्रण भेजा गया है, उनमें से लगभग 50 देशों ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है। इस सम्मेलन में भागीदारी की पुष्टि करने वाले देशों में ज्यादातर यूरोपीय संघ, नाटो गठबंधन, जी-7 के देश और जापान, दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे अमेरिका के सहयोगी शामिल हैं। यह सम्मेलन 15-16 जून को बर्गेनस्टॉक के रिसॉर्ट शहर में आयोजित किया जाना है। रूस को आमंत्रित नहीं किया गया है और श्री फासेल ने यह साफ कर दिया कि उनकी कूटनीति ‘बीआईसीएस’ (रूस को छोड़कर ब्रिक्स) नेताओं को साथ लाने की उम्मीद कर रही है ताकि वे भविष्य में होने वाली वार्ताओं के दौर में रूस को आमंत्रित करने की दृष्टि से मॉस्को को चर्चा के नतीजों की जानकारी दे सकें। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला द्वारा इसमें भाग नहीं लेने के संकेत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा 29 मई को अपने आम चुनावों का हवाला देकर निमंत्रण को औपचारिक रूप से अस्वीकार कर दिए जाने के साथ, सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि क्या चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और फिर से चुने जाने पर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भागीदारी होगी या आधिकारिक नामांकित व्यक्ति भाग लेंगे।

बाकी दुनिया को एक ऐसे मंच पर शामिल होने के लिए राजी करना जो यूक्रेन की ओर झुका हुआ दिखाई देता है, आयोजकों के लिए एक टेढ़ी खीर बना हुआ है। जहां स्विट्ज़रलैंड अपनी “तटस्थता” पर गर्व करता है, वहीं रूस पर प्रतिबंध लगाकर उसने मौजूदा संघर्ष में पहले ही अपना पक्ष चुन लिया है। कोई अन्य स्थल कहीं ज्यादा निष्पक्ष प्रतीत होता। इस सम्मेलन का एजेंडा शांति के लिए एक रूपरेखा या रोडमैप बनाना और खाद्य सुरक्षा एवं आवाजाही की स्वतंत्रता, परमाणु सुरक्षा तथा मानवीय मुद्दों को सुनिश्चित करने जैसे मुद्दों पर चर्चा करना है। ऐसा लगता नहीं है कि चर्चा की मेज पर दोनों पक्षों के बीच टकराव के बिना इनमें से किसी भी मुद्दे पर ज्यादा प्रगति हो सकेगी। जब तक रूस और यूक्रेन यह मानते रहेंगे कि वे युद्ध के मैदान पर ज्यादा बढ़त बना सकते हैं या बढ़त को मजबूत कर सकते हैं, तब तक यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि इस चर्चा से और क्या हासिल किया जा सकता है। एक वास्तविक बातचीत तो तभी शुरू होती है जब एक या दोनों पक्षों को यह विश्वास हो जाता है कि उनके सैन्य विकल्प चुक गए हैं। जैसा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है, अगर इस सम्मेलन का उद्देश्य रूस पर युद्धविराम की घोषणा करने या उसके द्वारा जीते गए इलाके को वापस सौंपने के लिए “दबाव” बनाना है, तो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विभिन्न संकल्पों के जरिए इस किस्म का दबाव लाने की विफलता के मद्देनजर इसके सफल होने की गुंजाइश नहीं है। लिहाजा नई दिल्ली, जिसने अब तक रूस की अत्यधिक आलोचना करने वाले किसी भी बयान में शामिल होने से इनकार किया है और मॉस्को के साथ अपने रिश्तों को कमजोर नहीं किया है, के लिए अपने दांव को टालना आसान हो सकता है और वह अपना पक्ष तभी जाहिर करे जब शांति के लिए वाकई संतुलित और ज्यादा समावेशी प्रयास शुरू हो।

यूक्रेन 10 सूत्री शांति योजना:

  1. विकिरण और परमाणु सुरक्षा,
  2. खाद्य सुरक्षा,
  3. ऊर्जा सुरक्षा, युद्ध बंदियों और रूस निर्वासित बच्चों सहित सभी कैदियों और निर्वासित लोगों की रिहाई। 
  4. क्षेत्रीय अखंडता की बहाली और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का कार्यान्वयन,
  5. रूसी सैनिकों की वापसी और शत्रुता का अंत।
  6. न्याय, युद्ध न्यायाधिकरण और प्रत्यावर्तन
  7. पारिस्थितिकी-हत्या, पर्यावरण की सुरक्षा, जल उपचार सुविधाओं को नष्ट करने और बहाल करने पर ध्यान देना।
  8. मानवीय सहायता, संघर्ष को बढ़ने से रोकना 
  9. सुरक्षा संरचना का निर्माण करना 
  10. संवाद और कूटनीति
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