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सन फ्रांसिस्को में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच इस सप्ताह हुई शिखर बैठक से दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों के बीच रिश्तों को प्रभावित करने वाले किसी भी बड़े मतभेद के सुलझने की संभावना नहीं है। लेकिन, इस बैठक ने हाल ही में जबरदस्त गिरावट से रूबरू और बढ़ती चिंता का सबब बनी इस रिश्ते में स्थिरता लाकर दुनिया के लिए बहुत जरुरी राहत का वादा किया है। एपेक की बैठक के मौके पर हुई इस शिखर बैठक के दो महत्वपूर्ण नतीजे निकले। पहले नतीजे के रूप में कई ठोस समझौते सामने आए, जिनमें सैन्य स्तर की सीधी बातचीत को फिर से शुरू करना और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस) से जुड़े जोखिम और सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा करना शामिल है। दूसरा नतीजा वह है जिसे दोनों पक्षों ने रिश्ते की मीनार में एक मंजिल जोड़ने के रूप में वर्णित किया है। यही वो लक्ष्य था, जब दोनों नेता आखिरी बार 2022 में बाली में मिले थे। हालांकि, बाली में हुई सहमति “जासूसी गुब्बारे” की घटना से गुम हो गई। इस बार सतर्क आशावाद यह है कि रिश्तों में स्थिरीकरण का यह प्रयास कहीं ज्यादा ठोस आधार पर किया गया है। लेकिन यह कब तक चलेगा यह एक खुला प्रश्न बना हुआ है, खासकर तब जब खलल पैदा करने वाली दो संभावित राजनीतिक घटनाएं सामने आने वाली हों। अगले साल जनवरी में ताइवान में चुनाव होंगे तथा इसके नतीजों के बाद इस पूरे जलडमरूमध्य में तनाव और बढ़ सकता है। ताइवान के मसले पर, दोनों पक्षों ने अपना रुख दोहराया। चीन ने जहां हस्तक्षेप के खिलाफ चेताया, वहीं अमेरिका ने कहा कि वह यथास्थिति में किसी भी बदलाव का विरोध करता है। इस बीच, अमेरिका नवंबर 2024 में होने वाले चुनावों से पहले अगले साल चुनावी रंग में सराबोर हो जाएगा और चुनाव प्रचार के दौरान अनिवार्य रूप से चीन को लेकर तीखी बयानबाजियां देखने को मिलेंगी।
एक दीर्घकालिक चिंता - और जो इस मामूली स्थिरीकरण की सीमाओं को रेखांकित करती है - मतभेद का वह एक बुनियादी बिंदु है कि दोनों देश अपने रिश्तों के भविष्य को कैसे देखते हैं। जैसा कि श्री शी ने कहा, “सबसे पहला सवाल” यह है कि क्या दोनों देश “प्रतिद्वंद्वी” हैं या “साझीदार”। उन्होंने अमेरिका द्वारा रिश्तों को मौलिक रूप से प्रतिस्पर्धी बताए जाने की आलोचना करते हुए कहा कि इससे “गलत जानकारी पर आधारित नीति निर्माण, गुमराह करने वाली कार्रवाइयां और अवांछित नतीजों” को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने अमेरिका से ताइवान और निर्यात नियंत्रण सहित विभिन्न मुद्दों पर “उलट-पलट करने, ... और सीमाओं को लांघने से बचने” को कहा। हालांकि, बाइडेन ने “अमेरिका और चीन के प्रतिस्पर्धी होने की बात पर जोर दिया” और इस प्रतिस्पर्धा को “जिम्मेदारी के साथ प्रबंधित किए जाने” की तत्कालिक चुनौती का जिक्र किया। इन मतभेदों को छोड़कर, दोनों देशों के बीच सहमति का एक महत्वपूर्ण बिंदु यह स्पष्ट अहसास है कि प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में बदलने से रोकने के लिए उच्च-स्तरीय जुड़ाव और संवाद के चैनलों को खुला रखना अहम है। यह भारत और चीन के बीच के रिश्तों के लिए स्पष्ट सबक प्रदान करता है, क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहा संकट चौथी बार सर्दियों के मौसम से रूबरू होने वाला है। बातचीत अपने आप में कोई रियायत नहीं है, और जैसा कि अमेरिका और चीन ने महसूस किया है, जब प्रमुख शक्तियों के बीच रिश्तों में गिरावट का खतरा हो, तो रिश्तों की मीनार में एक मंजिल जोड़ना पहला कदम होता है।