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गुजरात के राजकोट स्थित एक गेमिंग सेंटर और दिल्ली के एक नवजात नर्सिंग क्लीनिक में आग लगने की दो घटनाएं 24 घंटे के भीतर हुईं। इनमें 30 लोगों की मौत हुई। इसने एक बार फिर भारत के छुपे खतरों में से एक की याद अप्रिय ढंग से दिलायी है। यह खतरा है : इमारतों की अग्नि सुरक्षा के प्रति भवन निर्माताओं व मालिकों से लेकर नियामक प्राधिकारियों तक तमाम हितधारकों की व्यापक लापरवाही। हालांकि भारतीय मानक ब्यूरो ने अपनी ‘भारतीय राष्ट्रीय भवन-निर्माण संहिता (एनबीसी) 2016’ में आग से सुरक्षा का विस्तृत प्रोटोकॉल तय किया है, लेकिन यह एक सिफारिशी दस्तावेज है (क्योंकि अग्निशमन सेवाएं राज्यों का विषय है) और इसे नगरपालिका स्तर पर लागू किया जाता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन महानिदेशक, अग्निशमन सेवाएं की वेबसाइट के ‘अग्निशमन सेवाओं के बारे में - पृष्ठभूमि’ पेज की शुरुआती पंक्तियों से ही भारत के अग्नि सुरक्षा मानदंडों के प्रति घोर उपेक्षा स्पष्ट हो जाती है। ये पंक्तियां इस प्रकार हैं, “भारत में अग्निशमन सेवाएं सुव्यवस्थित नहीं हैं। हाल के वर्षों में अग्नि सुरक्षा कवच संबंधी जरूरतें कई गुना बढ़ गयी हैं जबकि अग्निशमन सेवाओं के विकास में उतनी ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।”
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भारत की अग्निशमन और आपातकालीन सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए 13वें वित्त आयोग से 7000 करोड़ रुपये के आवंटन की सिफारिश की थी। लेकिन आयोग ने स्थान विशेष के अनुरूप अग्निशमन व आपातकालीन तैयारी में सुधार और पुनर्गठन की जरूरत महसूस करते हुए, नगरपालिका स्तर पर लगभग 90,000 करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की। वर्ष 2019 में राज्यसभा को दिये गये गृह मंत्रालय के एक जवाब में कहा गया कि भारत के पास केवल 3,377 अग्निशमन (दमकल) केंद्र हैं, जबकि आग के खतरे और जोखिम विश्लेषण पर 2012 की एक राष्ट्रीय रिपोर्ट में इस संख्या के दोगुने से ज्यादा की मांग की गयी थी। कर्मचारियों की कमी तो और भी भयानक है। सन् 2019 में पूरे देश में केवल लगभग 55,000 अग्निशमन कर्मी थे, जबकि उससे सात साल पहले लगभग 5,60,000 की जरूरत थी। देर से ही सही, केंद्र ने आपातकालीन सेवाओं के आधुनिकीकरण के लिए पिछली जुलाई में 5,000 करोड़ रुपये अलग रखे और राज्यों से 1,400 करोड़ रुपये देने को कहा। यह 15वें वित्त आयोग की उस सलाह का पालन है जो राष्ट्रीय/राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष के लिए सभी आवंटनों का 12.5 फीसदी अलग रखने को कहती है। देशभर में लू और मौसम संबंधी चरम घटनाएं बढ़ने के साथ, यह साफ है कि अगलगी से निपटने की खातिर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए एनबीसी 2016 और ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ईसीबीसी) के समन्वय की जरूरत है, क्योंकि निर्माण सामग्री, बिजली की वायरिंग, वातानुकूलन, और तमाम तरह की शीतलन सामग्री के मानकों को दुरुस्त करना होगा। और भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की राजनीति, नौकरशाही, नीति-निर्माताओं और उद्यमियों को इस छुपे खतरे से निपटने पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।
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