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दूरसंचार विधेयक, 2023 को पेश किए जाने का कदम वायरलेस नेटवर्क और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए कानून को मजबूत करने के केंद्र सरकार के दीर्घकालिक लक्ष्य को हासिल करने के करीब है। इसमें 46 पेज का वह कानून शामिल है जो दूरसंचार ऑपरेटरों के लिए लाइसेंस और परमिट के लिए आवेदन करने जैसे नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाते हुए मौजूदा नियामक संरचनाओं को काफी हद तक बरकरार रखता है। लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाने की तैयारी है और दूरसंचार ऑपरेटरों के पास जहां अपने लाइसेंस शर्तों के गैर-अनुपालन से निपटने का एक नया तरीका होगा, वहीं सार्वजनिक व निजी संपत्तियों पर अपने उपकरण एवं ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क स्थापित करते समय इजाजत और विवाद के समाधान के लिए जिला एवं राज्य-स्तरीय अधिकारियों तक पहुंच भी होगी। यह विधेयक लंबे समय से कम से कम कुछ दूरदराज के इलाकों के लिए नेट कनेक्टिविटी हासिल करने का एक जरिया माने जाने वाले उपग्रह इंटरनेट उद्योग को भी राहत की सांस लेने की इजाजत देता है क्योंकि यह स्पष्ट है कि उसे स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाने की जरूरत नहीं होगी और इस तरह, भारत भी अन्य देशों के साथ इस मोर्चे पर बराबर की स्थिति में आ जाएगा। दूरसंचार उद्योग के विभिन्न संघों ने उनके नियामक संबंधी परिदृश्य को सुव्यवस्थित करने और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने के लिए इस विधेयक का स्वागत किया है और यह विधेयक संभवतः दूरसंचार विस्तार के अगले चरण के लिए बेहद जरुरी नियामक संबंधी स्थिरता और समर्थकारी वातावरण प्रदान कर सकता है। भारत की आधी से ज्यादा आबादी ‘आपस में जुड़ी’ दुनिया के हाशिए पर है और यह विधेयक ऐसी स्थिति में मददगार साबित हो सकता है।
लेकिन दिक्कतें कायम हैं: दूरसंचार की विस्तृत परिभाषा अपने दायरे में सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को समेटे हुए है और उनपर राज्य का अधिकार गोपनीयता एवं निगरानी संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है। राज्य-प्रायोजित जासूसी के पिछले आरोपों को देखते हुए ये चिंताएं महज अकादमिक नहीं हैं। यह विधेयक स्पैमिंग संबंधी चिंताओं से निपटने का प्रयास करता है, लेकिन इसके प्रस्तावित उपायों के लिए गोपनीयता से अतिरिक्त समझौते करने की जरूरत पड़ेगी। निगरानी संबंधी सुधार तथा इंटरनेट शटडाउन के मुद्दों के व्यापक निहितार्थ हैं और इन्हें सिर्फ इसलिए टाला नहीं जाना चाहिए क्योंकि ये विवादास्पद हैं। इस विधेयक के पाठ में हासिल
व्यापक शक्तियों के मद्देनजर, सरकार को इन चिंताओं पर खुले दिमाग से गौर करना चाहिए। जब अंतिम मसौदे को सार्वजनिक रूप से परामर्श के लिए जारी किया गया था, तो उद्योग सघों एवं जनता की प्रतिक्रियाओं की पड़ताल पर रोक लगा दी गई थी। जनता को अपने साफ-सुथरे मकसदों के बारे में और ज्यादा आश्वस्त करने के लिए, सरकार को पूरी पारदर्शिता और परामर्श के साथ ईमानदारी से नियम तय करने चाहिए। यह खासतौर से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिनियम के कई प्रावधानों को लागू होने से पहले दूरसंचार विभाग द्वारा अधिसूचित अधीनस्थ विधान की जरुरत होगी। उन्नीसवीं सदी में पहली बार टेलीग्राफ अधिनियम पारित होने के बाद से दूरसंचार परिदृश्य नाटकीय रूप से विकसित हुआ है और इंटरनेट दुनिया के विनियमन एवं कानून निर्माण को इस डिजिटल विस्फोट के साथ सामने आए सभी मुद्दों को व्यापक रूप से हल करने की जरुरत है।
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