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रविवार को बर्गेनस्टॉक में खत्म हुए दो-दिवसीय “शांति शिखर-सम्मेलन” के मिले-जुले नतीजे रहे। स्विट्जरलैंड 90 से ज्यादा देशों को साथ लाने में सफल रहा, जिनमें से 56 की नुमाइंदगी नेताओं ने की और अंतिम साझा बयान पर भारत समेत चंद अपवादों को छोड़कर, लगभग 82 देशों एवं संगठनों ने दस्तखत किये। इस दस्तावेज ने “यूक्रेन के खिलाफ रूसी फेडरेशन के जारी युद्ध” को खत्म करने का सशक्त आह्वान किया और संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता एवं अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति प्रतिबद्धता की पैरवी की। इसने व्यापक आपसी सहमति के तीन क्षेत्रों का उल्लेख किया : नाभिकीय सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और सभी युद्धबंदियों, विस्थापित व हिरासत में लिये गये यूक्रेनियाई लोगों की अदला-बदली। यह बयान अपने इरादे में बहुत महत्वाकांक्षी नहीं था, क्योंकि आयोजक बहुत सारे देशों (खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ से) को साथ लाने के लिए उत्सुक थे – जो वे कुछ हद तक करने में कामयाब रहे। हालांकि, इन सब क्षेत्रों को यूक्रेनियाई राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा “ऐतिहासिक जीत” बताये जाने के बावजूद, कुछ खामियां थीं। रूस को आमंत्रित नहीं करने के स्विट्जरलैंड के फैसले और अपनी बातचीत की बुनियाद संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के साथ-साथ ‘यूक्रेन पीस फार्मूले’ को बनाने से, यह आयोजन एकतरफा लगा। मॉस्को पर शायद सर्वाधिक प्रभाव रखने वाले चीन को एक प्रतिनिधिमंडल तक भेजने के लिए राजी नहीं कर पाना, एक और झटका था। किसी ब्रिक्स सदस्य, चाहे वर्तमान हो या भावी, का बयान पर दस्तखत नहीं करना यह इशारा करता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इसे लेकर नाउम्मीदी थी।
स्विट्जरलैंड, यूक्रेन और दूसरे पश्चिमी देशों ने इस सम्मेलन के लिए भारत का साथ हासिल करने के वास्ते विशेष प्रयास किया। इसमें अंतिम क्षणों में की गयी जेलेंस्की की वह अपील भी शामिल है जो उन्होंने इटली में ‘जी-7 आउटरीच समिट’ में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान की। रूस के एक करीबी साझेदार, ग्लोबल साउथ के एक प्रमुख खिलाड़ी और इस संघर्ष में संतुलित रुख अपनाने वाले एक देश के रूप में, भारत की मौजूदगी आयोजकों के लिए एक बड़ी जीत होती। हालांकि, जेद्दा और दावोस में दो तैयारी सम्मेलनों के लिए नयी दिल्ली ने एनएसए और डिप्टी एनएसए को भेजा, लेकिन यहां पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) ने किया। संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, आईएईए, मानवाधिकार परिषद और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर, यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की निंदा करने वाले हर प्रस्ताव से भारत लगातार अलग रहा। हो सकता है कि भारत सम्मेलन में जारी बयान के ज्यादातर हिस्से के साथ अपनी चिंताएं साझा करता हो, लेकिन वह खुले रूस-विरोधी झुकाव के साथ आगे नहीं बढ़ सकता था। अलबत्ता, अपनी मौजूदगी से नयी दिल्ली ने यह दिखाया कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने को इच्छुक है, खासकर अगर यह ज्यादा समावेशी भावी-सम्मेलन की दिशा में बढ़े जिसमें रूस और यूक्रेन भी वार्ता की मेज पर हों। फलस्वरूप, भारत का सम्मेलन में शिरकत करने, लेकिन उसके नतीजे का अनुमोदन नहीं करने का निर्णय शायद एक पहले से तय नतीजा था।
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