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आर्टेमिस समझौते में भारत के शामिल होने की खबर अंतरिक्ष समुदाय में इसे लेकर काफी दिलचस्पी देखी गई है। बाहरी अंतरिक्ष में भारत की बड़ी आकांक्षाएं हैं और समझौते में शामिल होकर उसने नासा और उसके भागीदारों के साथ बेहतर संबंध बनाने में रुचि का संकेत दिया है। रोस्कोस्मोस के साथ इसरो के घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए यह ध्यान देने योग्य बात है। यह यूक्रेन पर आक्रमण और सोवियत संघ के पतन के बाद अंतरिक्ष में रूसी गतिविधियों के कम दायरे के बाद रूस से दूर जाने का संकेत हो सकता है। चंद्रमा की ग्रीक देवी और अपोलो की बहन के नाम पर इसका नाम आर्टेमिस रखा गया।यह समझौता स्वयं एक गैर-बाध्यकारी बहुपक्षीय समझौता है, जिसका उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष में संसाधनों का उपयोग करते समय अपने पक्षों को प्रतिबद्धताओं और मानकों का एक सेट प्रदान करना है। समझौते के पक्षकारों को सूचनाओं के आदान-प्रदान से बहुत लाभ प्राप्त होगा तथा नासा के आर्टेमिस मिशन तक पहुंच प्राप्त होती है।इस कार्यक्रम के बाद अपोलो मिशन के बाद पहली बार चंद्रमा की सतह पर मनुष्यों को वापस भेजा जा राहा है जो भारत के अपने गगनयान मिशन में बहुत मदद करेगा। इसका उद्देश्य बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) के अनुच्छेद XI में निहित वैज्ञानिक निष्कर्षों और ज्ञान को साझा करने के सिद्धांत में गहराई से निहित है। यह संधि आज अंतरिक्ष कानून की नींव के रूप में कार्य करती है, जिसमें भारत अंतरिक्ष क्षेत्र के अन्य सभी प्रमुख खिलाड़ियों के साथ इसके 113 दलों में से एक है।
फिर भी, ऐसा क्या है जो भारत आर्टेमिस से हासिल करना चाहता है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें बाह्य अंतरिक्ष में संसाधन शोषण के इतिहास और इसका मार्गदर्शन Download pdf to Read More