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सोमवार की शाम जब हमास ने कतर और मिस्र की मध्यस्थता वाले संघर्षविराम प्रस्ताव को स्वीकार करने का एलान किया, तो रफा में उल्लसित भीड़ इस उम्मीद में सड़कों पर उतर आयी कि आशंकित इजराइली हमला अब टल जायेगा। गाजा के दक्षिण में फौजी घेराबंदी से गुजर रहे इस कस्बे में 14 लाख से ज्यादा लोगों ने शरण ले रखी है। लेकिन उन्हें मिली मोहलत बहुत छोटी साबित हुई, क्योंकि इजराइल ने तुरंत कहा कि यह प्रस्ताव “उसकी मुख्य मांगों को पूरा नहीं करता”। इजराइल ने रफा से 1,00,000 से अधिक लोगों को हटाये जाने का एलान पहले ही कर दिया था। हमास के प्रस्ताव स्वीकार करने के एक दिन बाद, बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने रफा में टैंक भेज दिये और मिस्र से लगी बॉर्डर क्रॉसिंग के गाजा वाले हिस्से पर कब्जा कर लिया। अब, व्यावहारिक रूप से इजराइल का गाजा के सभी प्रवेश बिंदुओं पर नियंत्रण है और उनमें से ज्यादातर बंद हैं। गाजा के मौजूदा हालात को आपदा कहना नाकाफी होगा। इजराइली रक्षा बल (आईडीएफ) सात अक्टूबर से लेकर अब तक चौतीस हजार (34,000) से ज्यादा लोगों को मार चुके हैं। सतहत्तर हजार (77,000) से ज्यादा फिलिस्तीनी जख्मी हुए हैं और लगभग पूरा गाजा विस्थापित हो चुका है। इसके उत्तरी और मध्य हिस्से पहले ही रहने के काबिल नहीं बचे हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का कहना है कि गाजा के “उत्तरी हिस्से में पूरी तरह अकाल की स्थिति” है, जबकि इस पूरे छींटमहल (इनक्लेव) में खाद्य संकट फैल चुका है। आईडीएफ सैनिकों की तैनाती वाले उत्तर और मध्य में लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है, जो अब रफा के अस्थायी आश्रयों में रह रहे हैं। और इजराइली उनसे फिर यहां से हटने को कह रहे हैं।
पिछले सात अक्टूबर को जब इजराइल पर वीभत्स हमला हुआ, तो दुनिया ने इस यहूदी राष्ट्र के साथ एकजुटता दिखायी। लेकिन इजराइल ने तब से जिस तरीके से गाजा के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है, वह हमास द्वारा इजराइलियों के साथ किए गए करतूतों से अलग नहीं है। अपने ताकतवर पश्चिमी सहयोगियों की मदद से, नेतन्याहू की सरकार ने गाजा की पूरी आबादी को सामूहिक दंड देना शुरू कर दिया। लेकिन फिलिस्तीनियों के खिलाफ बेहिसाब ताकत के इस्तेमाल के बावजूद, इजराइल का सैन्य प्रदर्शन उससे कोसों दूर है जिसके लिए उसे दशकों पहले जाना जाता था। इजराइल न तो हमास को हरा पाने में कामयाब हुआ है, न ही बंधकों को रिहा करा पाने में। अगर नेतन्याहू रफा पर आक्रमण की योजना के साथ आगे बढ़ते हैं, तो वह भयानक गलती करेंगे। अगर युद्ध खत्म होता है, तो हो सकता है कि उन्हें अपने राजनीतिक कैरियर को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़े। लेकिन अगर यह युद्ध हमेशा के लिए चलता रहा और फिलिस्तीनियों का मारा जाना जारी रहा, तो इजराइली राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय रूप से और कमजोर पड़ जायेगा। वह पहले ही अलग-थलग पड़ चुका है और संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष न्यायालय में नस्लसंहार के मामले का सामना कर रहा है। इस मानवीय व राजनीतिक आपदा और नैतिक रसातल से बाहर निकलने का एकमात्र व्यावहारिक रास्ता यह है कि तुरंत एक संघर्षविराम पर रजामंदी बने और उसके तहत सभी बंधकों की रिहाई और आईडीएफ की वापसी हो। यहां तक कि हमास – बिलाशक एक बेरहम आतंकी संगठन है, जो उन्हीं लोगों को तकलीफ में डालने से नहीं हिचकेगा जिनकी नुमाइंदगी का वह दावा करता है – ने भी एक समझौते पर दस्तखत करने की इच्छा दिखायी है। सवाल है कि नेतन्याहू तैयार हैं या नहीं।
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