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संपादकीय

अस्थिर हालात: घटता निर्यात

16.08.24 260 Source: The Hindu (16 August, 2024)
अस्थिर हालात: घटता निर्यात

तीन महीने की वृद्धि के बाद, पिछले महीने भारत के माल निर्यात को झटका लगा। वर्ष 2023-24 के खराब प्रदर्शन के बाद, माल निर्यात में तीन महीनों की वृद्धि से हालात में उल्लेखनीय सुधार की उम्मीद जगी थी। जुलाई में मालों का लदान (शिपमेंट) 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर से थोडा कम का रहा, जो 2023 के स्तर से 1.5 फीसदी की गिरावट को दर्शाता है। लेकिन यह नवंबर 2023 के बाद से सबसे कम आंकड़ा है और अक्टूबर 2022 के बाद से दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है। भले ही भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली शीर्ष 30 वस्तुओं में से 18 में वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन बाकी वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आई है। बढ़ोतरी दर्ज करने वालों क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स (37.3 फीसदी ऊपर), रेडीमेड परिधान (11.8 फीसदी) और हस्तशिल्प (13.2 फीसदी) शामिल हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात में 22.2 फीसदी की गिरावट आई, जबकि रत्न एवं आभूषणों में 20.4 फीसदी तथा रसायनों में 12 फीसदी की गिरावट आई और कुछ खाद्य पदार्थों के निर्यात पर अंकुश से नुकसान जारी रहा। इसके साथ ही आयात खर्च में 7.5 फीसदी की ठोस वृद्धि हुई, जो पेट्रोलियम के आयात में 17.4 फीसदी की वृद्धि और उपभोक्ताओं की मांग से संचालित इलेक्ट्रॉनिक्स सामान, दालें और वनस्पति तेल जैसे ‘गैर-तेल, गैर-सोना’ वस्तुओं के आयात में हुई उल्लेखनीय वृद्धि से प्रेरित रही। डॉलर के संदर्भ में सोने का आयात 10.7 फीसदी गिरा, लेकिन अप्रैल के बाद से यह तीन बिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच बना हुआ है। केंद्रीय बजट में आयात शुल्क में की गई कटौती के चलते, सोने का आयात और भी बढ़ सकता है। इसके अलावा, चांदी का आयात तेजी से बढ़ रहा है। मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापार समझौते के तहत दी जाने वाली रियायती शुल्क की वजह से, जुलाई में चांदी का आयात लगभग 440 फीसदी बढ़ गया और यह 2024-25 के पहले चार महीनों में लगभग 202 फीसदी ज्यादा है।

बेशक, घटते निर्यात और बढ़ते आयात के चलते व्यापार घाटा लगभग 24 फीसदी बढ़कर 23.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया - जो नौ महीने का चरम है। व्यापार घाटे का और ज्यादा बढ़ने का जोखिम बना हुआ है, विशेष रूप से भारत के निर्यात की वैश्विक मांग के सापेक्ष घरेलू मांग के बने रहने की उम्मीद है। वाणिज्य मंत्रालय अभी भी आशान्वित जान पड़ता है और यह मानता है कि सेवाओं के मजबूत निर्यात के मद्देनजर भारत पिछले साल के रिकॉर्ड निर्यात के आंकड़े को पार कर जाएगा। लेकिन यह अनुमान अनिश्चित है क्योंकि मौजूदा एवं ताजे भू-राजनैतिक व्यवधान (बांग्लादेश) बार-बार उभर रहे हैं और माल ढुलाई की लागत में बढ़ोतरी ने कुछ निर्यातों को अव्यवहारिक बना दिया है। जिन्सों की कीमतों में हालिया गिरावट अलग चिंता का सबब है, खासकर चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट के चलते। चीन के उत्पादकों को कीमतों में कटौती करके वैश्विक बाजारों को अपने सामानों से पाट देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वैश्विक व्यापार के 2023 के मुकाबले तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन भारत को इसके साथ कदम मिलाने और किसी भी लाभ को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। जहां नए बाजारों तक पहुंचने के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए कदम काबिलेतारीफ हैं, वहीं वैश्विक त्योहारी ऑर्डर के लिए बोली शुरू से पहले निर्यातकों को उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के वास्ते आधिकारिक योजनाओं के जरिए ज्यादा निश्चितता प्रदान करना बेहतर होगा। शुल्क छूट योजना, आरओडीटीईपी, को जहां सिर्फ 30 सितंबर तक ही बढ़ाया गया है, वहीं बड़ी कंपनियों के लिए ब्याज सब्सिडी योजना जून में समाप्त हो गई और छोटी कंपनियों के लिए यह इस महीने बंद हो गई। इन योजनाओं की निरंतरता और यहां तक कि उनके विस्तार के लिए अंतर-मंत्रालयी बातचीत में तेजी लाई जानी चाहिए ताकि निर्यातकों को आखिरी समय में पेश आने वाली दिक्कतों के बजाय उनकी नजर अपने परिचालन संबंधी गणित को पूरा करने के लिए अपेक्षाकृत लंबी समयसीमा में सिर्फ काम पर ही रहे।

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