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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के अंतरिम बजट भाषण में छतों पर सौर पैनलों का इस्तेमाल करके देश के एक करोड़ घरों में बिजली की आपूर्ति करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना दोहराई गई। वित्त मंत्री ने दावा किया कि इससे संबंधित घरों को सालाना 15,000 रुपये बचाने में मदद मिलेगी। अब तक की जानकारी के मुताबिक 300 यूनिट प्रति माह से कम मासिक बिजली की खपत वाले घर एक मध्यम आकार की सौर प्रणाली (1-2 किलोवाट) स्थापित करने के योग्य होंगे और इसका खर्च सरकार वहन करेगी। इसका मतलब न्यूनतम परिव्यय एक लाख करोड़ रुपये हो सकता है। फिलहाल, छतों पर लगाए जाने वाली सौर प्रणाली पर 40 फीसदी तक की सब्सिडी दी जाती है और शेष उपभोक्ताओं को वहन करना पड़ता है। प्रस्तावित नीति के तहत, सब्सिडी 60 फीसदी तक बढ़ जाएगी और बाकी का वित्तपोषण एक निजी डेवलपर द्वारा किया जाएगा जो विद्युत मंत्रालय से जुड़े एक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम से संबद्ध है। यह स्पष्ट रूप से स्थापना में गुणवत्ता और विश्वसनीय सेवा सुनिश्चित करेगा। ‘नेट-मीटरिंग’ की एक व्यवस्था होगी, जिसमें घरों द्वारा उत्पादित अधिशेष बिजली को ऋण चुकाने के लिए ग्रिड को वापस बेचा जा सकता है, हालांकि इसे लागू करने का वास्तविक तरीका काफी जटिल हो सकता है। जिन घरों में एयर कंडीशनर और हीटर होते हैं, वहां 300 यूनिट की मासिक खपत मामूली है, लेकिन राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, यह खपत का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। भारत में 25 करोड़ से 30 करोड़ घरों में से लगभग 80 फीसदी से 85 फीसदी घर एक महीने में औसतन 100 यूनिट से 120 यूनिट बिजली का इस्तेमाल करते हैं। लिहाजा, इस योजना के लिए पात्र एक करोड़ घर ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं होगा।
पहले की सौर संवर्धन नीतियों की तुलना में बड़ा अंतर यह है कि राज्य की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के उलट केंद्र ही सौर ऊर्जाकरण पर जोर देगा। भारत की डिस्कॉम कंपनियों, जिनमें से अधिकांश भारी घाटे में चल रही हैं, को उच्च खपत वाले ग्राहकों को छत पर सौर पैनल लगाने जैसे विकेंद्रीकृत उपायों की ओर ले जाने के काम में अब तक बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। ऐसी डिस्कॉम कंपनियों के पास घरेलू स्तर पर बिजली आपूर्ति के बारे में सबसे अच्छी जानकारियां उपलब्ध होने के मद्देनजर, उन्हें नजरअंदाज करना एक सफल रणनीति नहीं होगी। अब तक सुस्त पड़े रहे इस कार्यक्रम को रफ्तार देने का केंद्र का यह प्रयास स्वागतयोग्य है। आखिरकार, इस पहल में अगर घरों को शामिल नहीं किया गया तो विकार्बनिकृत (डीकार्बोनाइज्ड)बिजली की दिशा में उठाया गया कदम आधा-अधूरा ही होगा। अब तक, छत पर लगाए जाने वाले अनुमानित 40 गीगावाट (जीडब्ल्यू) के सौर पैनलों में से सिर्फ 12 गीगावाट लगाए जा सके हैं। यहां भी, घरेलू छतों की हिस्सेदारी केवल 2.7 गीगावाट की है और बाकी वाणिज्यिक या भवन इकाइयों पर लगी हैं। इस प्रकार केंद्र का यह कदम सौर पैनलों के सहायक घरेलू उद्योग को प्रेरित कर सकता है - आयातित पैनलों के लिए सब्सिडी उपलब्ध नहीं होगी - तथा इसे राज्यों के लिए और ज्यादा उदार बनाने के लिए इसके तौर-तरीकों में बदलाव किया जाना चाहिए। अन्यथा, एक वास्तविक जोखिम यह होगा कि पिछली पहलों में बाधा डालने वाली अधिकांश चुनौतियां फिर से पेश आयेंगी।