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संपादकीय

उचित हिस्साः बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की चिंताएं

19.09.24 370 Source: The Hindu (19 September, 2024)
उचित हिस्साः बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की चिंताएं

पिछले हफ्ते तिरुवनंतपुरम में हुई एक बैठक में, विपक्षी दलों द्वारा शासित पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों ने करों के विभाज्य पूल को 41 फीसदी पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिश - से बढ़ाकर 50 फीसदी विभाजन और केंद्र द्वारा उपकर एवं अधिभार के रूप में संग्रह किए जाने सकने वाली राशि पर एक सीमा आयद करने की मांग की। ये उपकर एवं अधिभार आम तौर पर केंद्र सरकार की विशिष्ट परियोजनाओं को निधि देने और हस्तांतरण तंत्र के दायरे से परे चालान (इन्वॉइस) पर टॉप- अप के रूप में दिखाई देते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जीएसटी ढांचे की शुरुआत के बाद से कर एकत्र करने की राज्यों की स्वायत्तता पर बढ़ते उल्लंघन और बेहतर आर्थिक सूचकांक वाले राज्यों को दंडित करने पर चर्चा करने के लिए विपक्ष दलों और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने संबंधी अपनी रुचि का ऐलान करके इस बहस को भी फिर से छेड़ दिया है। वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में बेंगलुरु की उपनगरीय रेल परियोजना जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए आवंटित मामूली रकम या केरल के विझिंजम बंदरगाह और चेन्नई मेट्रो रेल परियोजना के दूसरे चरण के लिए केंद्रीय धन का आवंटन न किए जाने की पृष्ठभूमि में यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण है। इस बैठक को पिछले दिसंबर में तमिलनाडु के दक्षिणी डेल्टा क्षेत्रों में बाढ़, पश्चिमी गुजरात में हाल ही में भारी बारिश और केरल के वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन जैसी देश भर के विभिन्न राज्यों में आई प्राकृतिक आपदाओं की पृष्ठभूमि में भी देखा जाना चाहिए। कर हस्तांतरण के संबंध में सोलहवें वित्त आयोग की सिफारिशें अक्टूबर 2025 तक अपेक्षित हैं।

पंद्रहवें वित्त आयोग द्वारा जहां विभिन्न राज्यों के बीच राज्य सकल घरेलू उत्पाद में अंतर को देश के गरीब क्षेत्रों के विकास के लिए एक उपाय के रूप में कर हस्तांतरण का निर्धारण करने में 45 फीसदी का उच्चतम महत्व दिया गया है, वहीं इससे गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे शीर्ष कर राजस्व का योगदान देने वाले राज्यों के हस्तांतरण में खासी कमी आई है। औद्योगिक और आर्थिक महाशक्तियों के रूप में, इन राज्यों को हितों के अनुरूप इतनी पूंजी और सामाजिक व्यय की दरकार है जो उनके विभिन्न क्षेत्रों की खास विकासात्मक, जलवायु संबंधी और औद्योगिक जरूरतों को पूरा कर सके। कर संग्रह के मामले में जीएसटी ढांचे द्वारा राज्यों पर प्रतिबंधों के अलावा, कम हस्तांतरण का मतलब यह भी है कि बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की सरकारें अपने आर्थिक और सामाजिक विकास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर अपने हाथ बंधे हुए पा रही हैं। इसके अलावा, न तो जीएसटी और न ही वित्त आयोग ने आकस्मिक खचों पर ध्यान दिया है, जो अब मौसम की चरम घटनाओं से निपटने के लिए पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हैं। भारत जैसे बड़े एवं जटिल देश में, जहां सामाजिक व आर्थिक संकेतक बेहद भिन्न हैं और प्राकृतिक संसाधनों एवं कमजोरियों का भी उतना ही विविधतापूर्ण प्रसार है, कर हस्तांतरण ढांचे में संशोधन करने के वास्ते तत्काल उपाय करने का वक्त आ गया है ताकि राज्यों को अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्तता मिले। इससे सही मायने में संघीय और सहभागी शासन के मॉडल को मौका मिलेगा।

सोलहवें वित्त आयोग का गठन

  • सोलहवें वित्त आयोग का गठन 31.12.2023 को श्री अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में किया गया। आयोग से अनुरोध किया गया है कि वह अपनी सिफारिशें 31 अक्टूबर 2025 तक उपलब्ध कराए, जिसमें 1 अप्रैल 2026 से शुरू होने वाली 5 वर्ष की अवधि शामिल होगी।

16वें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की प्रमुख शर्तें क्या हैं?

  • कर आय का विभाजन: संविधान के अध्याय I, भाग XII के तहत केंद्र सरकार और राज्यों के बीच करों के वितरण की सिफारिश करना।इसमें कर आय से राज्यों के बीच शेयरों का आवंटन शामिल है।
  • सहायता अनुदान के सिद्धांत: भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की स्थापना करना।इसमें विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत उस अनुच्छेद के खंड (1) के प्रावधानों में उल्लिखित उद्देश्यों से अलग उद्देश्यों के लिये राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में प्रदान की जाने वाली राशि का निर्धारण शामिल है।
  • स्थानीय निकायों के लिये राज्य निधि को बढ़ाना: राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के उपायों की पहचान करना।इसका उद्देश्य राज्य के अपने वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर, राज्य के भीतर पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये उपलब्ध संसाधनों को पूरक बनाना है।
  • आपदा प्रबंधन वित्तपोषण का मूल्यांकन: आयोग आपदा प्रबंधन पहल से संबंधित वर्तमान वित्तपोषण संरचनाओं की समीक्षा कर सकता है। इसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए फंड की जाँच करना और सुधार या बदलाव के लिये उपयुक्त सिफारिशें प्रस्तुत करना शामिल है।
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